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________________ आचार्य उमास्वाति ने प्रशमरतिप्रकरण में समवायांग के क्रम का ही अनुसरण किया है। पाँचवें अध्ययन के दो नाम प्राप्त होते हैं-लोकसार और आवंती। आचारांग-वृत्ति से यह परिज्ञात होता है कि उन्हें ये दोनों नाम मान्य थे। आचारांग नियुक्ति में महापरिज्ञा अध्ययन को सातवां अध्ययन माना है। और चूर्णिकार तथा वृत्तिकार इन दोनों ने भी आचारांग नियुक्ति के मत को मान्य किया है। परन्तु स्थानांग समवायांग और प्रशमरतिप्रकरण में महापरिज्ञा अध्ययन को सातवां न मानकर नवम अध्ययन माना है। आवश्यकनियुक्ति तथा प्रभावकचरित आदि ग्रन्थों के आधार से यह स्पष्ट है कि वज्रस्वामी ने महापरिज्ञा अध्ययन से ही आकाशगामिनीविद्या प्राप्त की थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि वज्रस्वामी के समय तक महापरिज्ञा अध्ययन विद्यमान था। किन्तु आचारांग वृत्तिकार के समय महापरिज्ञा अध्ययन नहीं था। विज्ञों का अभिमत है कि चूर्णिकार के समय महापरिज्ञा अध्ययन अवश्य रहा होगा पर उसके पठन-पाठन का क्रम बन्द कर दिया गया होगा। आचारांग नियुक्ति के आठवें अध्ययन का नाम "विमोक्खो" है तो समवायांग में उसका नाम"विमोहायतन" है। आचारांग में चार स्थलों पर "विमोहायतन" शब्द व्यवहृत हुआ है। जिससे प्रस्तुत अध्ययन का नाम "विमोहायतन" रखा है या विमोक्ष की चर्चा होने से विमोक्ष कहा गया हो। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में चार चूलायें हैं उनमें प्रथम और द्वितीय चूला में सात-सात अध्ययन हैं, तृतीय और चतुर्थ चूला में एक-एक अध्ययन है। चूर्णिकार की दृष्टि से रूवसत्तिक्कय यह द्वितीय चूला का चतुर्थ अध्ययन है; और सद्दसत्तिक्कय यह पाँचवाँ अध्ययन है। आचारांग सूत्र की प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों में और आचारांग की शीलांकवृत्ति में तथा प्रशमरति ग्रन्थ में सहसत्तिक्क्य के पश्चात् रूवसत्तिक्कय, इस प्रकार का क्रम सम्प्राप्त होता है। गोम्मटसार, धवला, जयधवला, अंगपण्णति तत्त्वार्थराजवर्तिक आदि दिगम्बर परम्परा के मननीय ग्रन्थों में आचारांग का जो परिचय प्रदान किया गया है उससे यह स्पष्ट होता है कि आचारांग में मन-वचन, काया, भिक्षा, ईर्या, उत्सर्ग, शयनासन और विनय इन आठ प्रकार की शुद्धियों के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है। आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में पूर्ण रूप से यह वर्णन प्राप्त होता है। आचारांग का पदप्रमाण .. आचारांगनियुक्ति हारिभद्रीया नन्दीवृत्ति नन्दीसूत्रचूर्णि' और आचार्य अभयदेव की समवायांगवृत्ति १० में आचारांग सूत्र का परिमाण १८ हजार पद निर्दिष्ट है। पर, प्रश्न यह है कि पद क्या है ? जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण १ ने पद के स्वरूप पर आचारांग वृत्ति पृष्ठ १९६ आचारांग नियुक्ति गाथा ३१-३०, पृष्ठ ९ आचारांग चूर्णि स्थानांग सूत्र ९ समवायांग सूत्र ८९ प्रशमरति प्रकरण ११४-११७ आचारांग नियुक्ति गाथा ११ हारिभद्रीया नन्दीवृत्ति पृष्ठ ७६ नन्दीसूत्र चूर्णी पृष्ठ ३२ समवायांग वृत्ति पृष्ठ १०८ विशेषावश्यक भाष्य गाथा १००३, पृष्ठ ४८-६७ ८. ११. विशप [२५]
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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