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________________ ... आचार-गोचर, विनय, वैनयिक (विनय का फल), उत्थितासन, णिषण्णासन और शयितासन, गमन, चंक्रमण, अशन आदि की मात्रा, स्वाध्याय प्रभृति में योग नियुञ्जन, भाषा समिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, भक्तपान, उद्गम-उत्थान, एषणा प्रभृति की शुद्धि, शुद्धाशुद्ध के ग्रहण का विवेक, व्रत, नियम, तप, उपधान आदि। . आचारांग-नियुक्ति में आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययनों का सार संक्षेप में इस प्रकार है - (१) जीव-संयम, जीवों के अस्तित्व का प्रतिपादन और उसकी हिंसा का परित्याग। (२) किन कार्यों के करने से जीव कर्मों से आबद्ध होता है और किस प्रकार की साधना करने से जीव कर्मों से मुक्त होता है। (३) श्रमण को अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्ग समुपस्थित होने पर सदा समभाव में रहकर उन उपसर्गों को सहन करना चाहिए। (४) दूसरे साधकों के पास अणिमा, गणिमा, लघिमा आदि लब्धियों के द्वारा प्राप्त ऐश्वर्य को निहार कर साधक सम्यक्त्व से विचलित न हो। (५) इस विराट् विश्व में जितने भी पदार्थ हैं वे निस्सार हैं, केवल सम्यक्त्व रत्न ही सार रूप है। उसे प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करें। (६) सद्गुणों को प्राप्त करने के पश्चात् श्रमणों को किसी भी पदार्थ में आसक्त बन कर नहीं रहना चाहिए। (७) संयम-साधना करते समय यदि मोह-जन्य उपसर्ग उपस्थित हों तो उन्हें सम्यक् प्रकार से सहन करना चाहिए। पर साधना से विचलित नहीं होना चाहिए। (८) सम्पूर्ण गुणों से युक्त अन्तक्रिया की सम्यक् प्रकार से आराधना करनी चाहिए। .. (९) जो उत्कृष्ट-संयम-साधना, तप:आराधना भगवान् महावीर ने की, उसका प्रतिपादन किया गया है। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध में नौ अध्याय हैं। चार चूलिकाओं से युक्त द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन हैं, इस तरह कुल पच्चीस अध्ययन हैं। आचारांग नियुक्ति में जो अध्ययनों का क्रम निर्दिष्ट है, वह समवायांग के अध्ययन-क्रम से पृथक्ता लिए हुए हैं । तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययनों का क्रम इस प्रकार है - आचारांग नियुक्ति समवायांग सत्थपरिण्णा सत्थपरिण्णा लोगविजय २. लोकविजय सीओसणिज ३. सीओसणिज्ज सम्मत्त लोगसार आवंती धुत महापरिणा ७. विमोहायण विमोक्ख उवहाणसुय उवहाणसुय महापरिण्णा ४. आचारांग नियुक्ति गाथा ३३, ३४ आचारांग नियुक्ति गाथा-३१, ३२ पृष्ठ ९ समवायांग सूत्र प्रकीर्णक, समवाय सूत्र-८९ [२४]
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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