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________________ 'विमोक्खो' अट्ठमं अज्झयणं पढमो उद्देसओ विमोक्ष' अष्टम अध्ययन : प्रथम उद्देशक असमनोज्ञ-विमोक्ष १९९. से बेमि - समणुण्णस्स वा असमणुण्णस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पादपुंछणं वा णो पाएज्जा, णो णिमंतेजा, णो कुज्जा वेयावडियं परं आढायमाणे त्ति बेमि। धुवं चेतं जाणेज्जा असणं वा जाव पादपुंछणं वा, लभिय णो लभिय, भुंजिय णो भुंजिय, पंथं २ वियत्ता विओकम्म, विभत्तं धम्मं झोसेमाणे समेमाणे वलेमाणे पाएज वा, णिमंतेज वा कुज्जा वेयावडियं। परं अणाढायमाणे त्ति बेमि। १९९. मैं कहता हूँ - समनोज्ञ (दर्शन और वेष से सम, किन्तु आचार से असमान) या असमनोज्ञ (दर्शन, वेष और आचार - तीनों से असमान) साधक को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन आदरपूर्वक न दे, न देने के लिए निमंत्रित करे और न उनका वैयावृत्य (सेवा) करे। (असमनोज्ञ भिक्षु कदाचित् मुनि से कहे - (मुनिवर !) तुम इस बात को निश्चित समझ लो - (हमारे मठ या आश्रम में प्रतिदिन) अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन (मिलता है)। तुम्हें ये प्राप्त हुए हों या न हुए हों तुमने भोजन.कर लिया हो या न किया हो, मार्ग सीधा हो या टेढा हो; हमसे भिन्न धर्म का पालन (आचरण) करते हुए भी तुम्हें (यहाँ अवश्य आना है)। (यह बात) वह (उपाश्रय में - धर्म-स्थान में) आकर २. से बेमि, समणुण्णस्स० पाठ (सू० १९९) में णो पाएजा,णिमंतेजा,णो कुजा वेयावडियं, परं आढायमाणे त्ति बेमि' के बदले चूर्णि में 'पाएजा' वा णिमन्तेज वा कुज्जा वा वेयावडियं परं आढायमाणा' पाठ मिलता है। इसका अर्थ इस प्रकार है..."अत्यधिक आदरपूर्वक दे, देने के लिए निमन्त्रित करे या उनका वैयावृत्य (सेवा) करे।" पथं वियत्ता वि ओकम्म, आदि पाठ के बदले चूर्णि के पाठ में मिलता है - "वत्तं पंथ (?) विभत्तं धम्मं झोसेमाणा समेमाणा प (व)लेमाणा इति पादिज वा णिमंतेज वा कुज्जा वेयावडियं वा आढायमाण। परं अणाढायमाणे।" अर्थात् - तुम्हारा मार्ग सीधा है, हमसे भिन्न धर्म का पालन करते हुए भी (तुमको यहाँ अवश्य आना है) यह (बात) वह उपाश्रय में आकर कहता हो, या रास्ते में चलते कहता हो, अथवा उपाश्रय में आकर या मार्ग में चलते हुए वह परम आदर देता हुआ अशनादि देता हो, उनके लिए निमन्त्रित करता हो या वैयावृत्य करता हो तो मुनि उसकी बात का बिलकुल आदर न देता हुआ चुप रहे। इसका विशेष अर्थ चूर्णि में इस प्रकार है - "वत्तं वियत्तं अणुपंथे सो अम्ह विहारावसहो वा। थोवं उव्वतियव्यं कतियिप्पदाणि। अथवा वत्तो पहो णिराबातो ण तिणादिणा छण्णो।" अर्थात् - मार्ग थोड़ा-सा मुड़कर है। मार्ग पर ही हमारा विहार या आवसथ है। थोड़ा-सा कुछ कदम मुड़ना पड़ता है। अथवा रास्ता आवृत्त है निवृत्त नहीं है, घास आदि से आच्छादित है।
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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