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से किसी एक मरण को अवश्य स्वीकार करना होता है। ये मरण भी भाव-विमोक्ष के कारण होने से भावविमोक्ष हैं। उनके अभ्यास के लिए साधक के द्वारा विविध बाह्याभ्यन्तर
तपों द्वारा शरीर और कषाय की संलेखना करना, उन्हें कृश करना भी भाव-विमोक्ष है। । विमोक्ष अध्ययन के ८ उद्देशक हैं। जिनमें पूर्वोक्त भाव-विमोक्ष के परिप्रेक्ष्य में विविध ___ पहलुओं से विमोक्ष का निरूपण है।
प्रथम उद्देशक में असमनोज्ञ-विमोक्ष का, द्वितीय उद्देशक में अकल्पनीय-विमोक्ष का तथा . तृतीय उद्देशक में इन्द्रिय-विषयों से विमोक्ष का वर्णन है। चतुर्थ उद्देशक से अष्टम उद्देशक तक एक या दूसरे प्रकार से उपकरण और शरीर के परित्यागरूप विमोक्ष का प्रतिपादन है। जैसे कि चतुर्थ में वैहानस और गृद्धपृष्ठ नामक मरण का, पंचम में ग्लानता एवं भक्तपरिज्ञा का, छठे में एकत्वभावना और इंगितमरण का, सप्तम में भिक्षु प्रतिमाओं तथा पादपोपगमन का एवं अष्टम उद्देशक में द्वादश वर्षीय संलेखनाक्रम एवं भक्त-परिज्ञा, इंगतिमरण एवं
पादपोपगमन के स्वरूप का प्रतिपादन है। - यह अध्ययन सूत्र १९९ से प्रारम्भ होकर सूत्र २५३ पर समाप्त होता है।
आचा० नियुक्ति गाथा २६१, २६२, आचा० शीला० टीका पत्रांक २६१ आचा० नियुक्ति गा० २५३, २५४, २५५, २५६, २५७ आचा० शीला० टीका पत्रांक २५९