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चतुर्थ अध्ययन
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चउत्थो उद्देसओ
चतुर्थ उद्देशक
सम्यक्चारित्र : साधना के संदर्भ में
१४३. आवीलए पवीलए ज़िप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं हिच्चा उवसमं । तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सदा जते । दुरणुचरो मग्गो वीराणं अणियट्टगामीणं । विगिंच मंस-सोणितं । एस पुरिसे दविए वीरे आयाणिजे वियाहिते जे धुणाति समुस्सयं वसित्ता बंभचेरंसि । १४४. णेत्तेहिं पलिछिण्णेहिं आयाणसोतगढिते बाले अव्वोच्छिण्णबंधणे अणभिक्कंतसंजोए । 'तमंसि अविजाणओ आणाए लंभो णत्थि त्ति बेमि । १४५. जस्स णत्थि पुरे पच्छा मझे तस्स कुओ सिया ? से हु पन्नाणमंते बुद्धे आरंभोवरए। सम्ममेतं ति पासहा । जेण बंधं वहं घोरं परितावं च दारुणं । पलिछिंदिय बाहिरंग च सोतं णिक्कम्मदंसी इह मच्चिएहिं । कम्मुणा सफलं दट्टुं ततो णिजाति वेदवी ।
१४६. जे खलु भो वीरा समिता सहिता सदा जता संथडदंसिणो आतोवरता अहा तहा लोगं उवेहमाणा पाईणं पडीणं-दाहिणं उदीणं इति सच्चंसि परिविचिट्ठिसु । साहिस्सामो णाणं वीराणं समिताणं सहिताणं सदा १. चूर्णि में इसके स्थान पर 'इहेच्चा उवसम' पाठ मिलता है, जिसका अर्थ वहाँ किया गया है - "इहेति इह प्रवचने, एच्चा
आगंतु" इस प्रवचन (वीतराग दर्शन) में (उपशम) प्राप्त करने के लिए। २. "दुरणुचरो "आदिवाक्य का अर्थ चूर्णि में इस प्रकार है - "केण दुरणुचरो? जे ण अणियट्टगामी।" अर्थात् (यह)
मार्ग किसके लिए दुरनुचर है ? जो अनिवृत्तगामी (मोक्षगामी मोक्षपथगामी) नहीं है। "वीरा तव-णियम-संजमेसु ण विसीतंति अणियट्टकामी।" - अर्थात् अनिवृत्त (मोक्ष) कामी वीर तप, नियम और संयम से कभी घबराते नहीं। इसके स्थान पर 'आताणिज्जे','आयाणिए','आदाणिओ','आताणिओ'- ये पद कहीं-कहीं मिलते हैं। 'णेत्तेहिं पलिछिण्णेहि.' का अर्थ चूर्णि में यों किया गया है - "णयंतीतिणेताणि चक्खुमादीणि।"जेसिं संजतत्ते दव्वणेताणि छिण्णाति आसी,जं भणितं जिताणि, त एव केयि परीसहोदया भावणेत्तेहिं छिण्णेहिं, किं ? ससोतेहिं मुच्छिता जाव अज्झोववण्णा ।" नेत्र-चक्षु आदि हैं। जिस संयमी के द्रव्यनेत्र नष्ट हो गए फिर भी इन्द्रियां जीत लीं, वे ही
साधक परिषह के उदय होने पर भाव नेत्रों के सोत (राग-द्वेष रहितं) नष्ट होने पर आसक्त विषय-मूच्छित हो जाते हैं। ५. इसके स्थान पर "तमस्स अवियाणतो " पाठ है। चूर्णि में अर्थ किया गया है-"."एवं तस्स अवियाणतो तत्थ
अवाया भवंति" अर्थात् मोहान्धकार के कारण आत्महित नजानने के कारण अनेक उपाय (आपत्तियाँ) उपस्थित होते हैं। चूर्णि में पाठ यों है - 'एतं च सम्म पासहा'।