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तृतीय अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र १०८-१०९
पासिय 'आतुरे पाणे अप्पमत्तो परिव्वए । मंता एयं मतिमं पास,
आरंभज दुक्खमिणं ति णच्चा, मायी पमायी पुणरेति गब्भं । उवेहमाणो सद्द-रूवेसु अंजू माराभिसंकी मरणा पमुच्चति ।
१०९. अप्पमत्तो कामेहं, उवरतो पावकम्मेहि, वीरे आयगुत्ते खेयण्णे ।जे पजवजातसत्थस्स खेतण्णे से असत्थस्स खेतण्णे। जे असत्थस्स खेतण्णे से पज्जवजातसत्थस्स खेतण्णे ।
१०८. बुढ़ापे और मृत्यु के वश में पड़ा हुआ मनुष्य (शरीरादि के मोह से) सतत मूढ बना रहता है। वह धर्म को महीं जान पाता।
(सुप्त) मनुष्यों को शारीरिक-मानसिक दुःखों से आतुर देखकर साधक सतत अप्रमत्त (जागृत) होकर विचरण करे।
हे मतिमान् ! तू मननपूर्वक इन (भावसुप्त आतुरों-दुखियों) को देख।
यह दुःख आरम्भज - प्राणि-हिंसाजनित है, यह जानकर (तू निरारम्भ होकर अप्रमत्त भाव से आत्महित में प्रवृत्त रह)।
माया और प्रमाद के वश हुआ मनुष्य (अथवा मायी प्रमादवश) बार-बार जन्म लेता है - गर्भ में आता है।
शब्द और रूप आदि के प्रति जो उपेक्षा करता है - राग-द्वेष नहीं करता है, वह ऋजु (आर्जव-धर्मशील संयमी) होता है, वह मार (मृत्यु या काम) के प्रति सदा आशंकित (सतर्क) रहता है और मृत्यु (मृत्यु के भय) से मुक्त हो जाता है। ___ १०९. जो काम-भोगों के प्रति अप्रमत्त है, पाप कर्मों से उपरत - मन-वचन-काया से विरत है, वह पुरुष वीर और आत्मगुप्त (आत्मा को सुरक्षित रखने वाला) होता है और जो (अपने आप में सुरक्षित होता है) वह खेदज्ञ (इन काम-भोगों से प्राणियों को तथा स्वयं को होने वाले खेद का ज्ञाता) होता है, अथवा वह क्षेत्रज्ञ (अन्तरात्मा को जानने वाला) होता है।
जो (शब्दादि विषयों की) विभिन्न पर्यायसमूह के निमित्त से होने वाले शस्त्र (असंयम, आसक्ति रूप) के खेद (अन्तस्-हार्द) को जानता है, वह अशस्त्र (संयम - अनासक्ति रूप) के खेद (अन्तस्) को जानता है, वह (विषयों के विभिन्न) पर्यायों से होने वाले शस्त्र (असंयम) के खेद (अन्तस्) को जानता है।
विवेचन - इन सूत्रों के साधक को वृद्धत्व, मृत्यु आदि विभिन्न दुःखों से आतुर प्राणी की दशा एवं उसके कारणों और परिणामों पर गम्भीरता से विचार करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि शब्द-रूपादि कामों के प्रति अनासक्त रहने वाला सरलात्मा मुनि मृत्यु के भय से विमुक्त हो जाता है।
___ यहाँ वृत्तिकार ने एक शंका उठाई है - देवता 'निर्जर' और 'अमर' कहलाते हैं, वे तो मोहमूढ नहीं होते होंगे और धर्म को भलीभाँति जान लेते होंगे ? इसका समाधान इस प्रकार किया गया है कि 'देवता निर्जर कहलाते हैं, पर १. पाठान्तर है - आतुरिए पाणे,आतुरपाणे।