________________
द्वितीय अध्ययन : षष्ठ उद्देशक : सूत्र १०२-१०४
७३ दूसरा अर्थ है। _जंदुक्खं पवेदितं - पद में दुःख शब्द से दुःख के हेतुओं का भी ग्रहण किया है। दुःख का हेतु राग-द्वेष है अथवा राग-द्वेषात्मक वृत्ति से आकृष्ट - बद्ध कर्म है। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार जन्म और मरण दुःख है और जन्म-मरण का मूल है - कर्म। अतः कर्म ही वास्तव में दुःख है। कुशल पुरुष उस दुःख की परिज्ञा - अर्थात् दुःख से मुक्त होने का विवेक / ज्ञान बताते हैं।
इह कम्मं परित्राय सव्वसो - इस पद का एक अर्थ इस प्रकार से भी किया जाता है, 'साधक कर्म को, अर्थात् दुःख के समस्त कारणों को सम्यक्तया जानकर फिर उसका सर्व प्रकार से उपदेश करे।'.
अणण्णदंसी अणण्णारामे- ये दोनों शब्द आध्यात्मिक रहस्य के सूचक प्रतीत होते हैं। अध्यात्म की भाषा में चेतन को 'स्व' तथा जड़ को 'पर' - अन्य कहा गया है। परिग्रह, कषाय, विषय आदि सभी'अन्य' हैं। अन्य से अन्य - अनन्य है, अर्थात् चेतन का स्वरूप, आत्मस्वभाव, यह अनन्य है। जो इस अनन्य को देखता है, वह इस अनन्य में, आत्मा में रमण करता है। जो आत्म-रमण करता है, वह आत्मा को देखता है। आत्म-रमण एवं आत्मदर्शन का यह क्रम है कि जो पहले आत्म-दर्शन करता है, वह आत्म-रमण करता है । जो आत्म-रमण करता है, वह फिर अत्यन्त निकटता से, अति-सूक्ष्मता व तन्मयता से सर्वांग आत्म-दर्शन कर लेता है।
रत्नत्रय की भाषा-शैली में इस प्रकार भी कहा जा सकता है, 'आत्मा को जानना-देखना सम्यग् ज्ञान और सम्यग् दर्शन और आत्मा में रमण करना सम्यक् चारित्र है।' उपदेश-कौशल
१०२. जहा पुण्णस्स कत्थति तहा तुच्छस्स कत्थति । जहा तुच्छस्स कत्थति तहा पुण्णस्स कत्थति । अवि य हणे अणातियमाणे । एत्थं पि जाण सेयं ति णत्थि । केऽयं पुरिसे कं च णए। १०३. एस वीरे पसंसिए जेबद्ध पडिमोयए, उड्टुं अहं तिरियं दिसास, से सव्वतो सव्वपरिण्णाचारी ण लिप्पति छणपदेण वीरे । १०४. से मेधावी जे अणुग्घातणस्स खेत्तण्णे जे य बंधपमोक्खमण्णेसी । कुसले पुण णो बद्धे णो मुक्के। से जंच आरंभे, जं च णारभे, अणारद्धं च ण आरभे । छणं छणं परिणाय लोगसण्णं च सव्वसो ।
आचा० शीला० टीका पत्रांक १३१ । १ १. कम्मं च जाई मरणस्स मूलं, दुक्खं च जाई मरणं वयन्ति - ३२१७ ३. (क) अणुग्घायणस्स खेयण्णे"अणुग्घातण खेतण्णे' - पाठान्तर है।
(ख) टीकाकार ने 'अण' का अर्थ कर्म तथा'उद्घातन' का क्षय करना' अर्थ करके 'अणोद्घातनखेदज्ञ'का कर्म क्षय करने के मार्ग या रहस्य का ज्ञाता अर्थ किया है।
-टीका पत्र १३३