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________________ [८] जो उत्तम गृहस्थ कवि हो गये हैं उन सब में यह उच्चस्थानाधिष्ठित था । गूर्जरेश्वर सिद्धराजजयसिंह का यह 'बालमित्र *' था और राजा हमेशां इसे ' भ्राता' के सम्बोधन से बुलाये करता था । इस की लोकोत्तर कवित्वशक्ति से प्रसन्न हो कर नृपति ने इसे ' कविराज ' या ' कविचक्रवर्ती ' के महत्त्वशाली उपपद से सम्मानित किया था । उपर्युक्त सोमप्रभाचार्य ने इस के यश का वर्णन, सुमतिनाथचरित्र और कुमारपाकमतिबोध की अन्तकी प्रशस्तियो में, बहुत ही संक्षेप में परन्तु बडे गम्भीर शब्दों में, एक पद्य द्वारा, इस प्रकार किया हैप्राग्वाटान्वयसागरेन्दुरसमप्रज्ञः कृतज्ञः क्षमी, वाग्ग्मी सूक्तिसुधानिधानमननि श्रीपालनामा पुमान् । यं लोकोत्तरकाव्यरञ्जितमतिः साहित्यविद्यारतिः श्रीसिद्धाधिपतिः'कवीन्द्र' इति च भ्रातेति च व्याहरत् ।। यह, अणहिलपुर के तत्कालीन महान् और प्रतापवान् जैन श्वेताम्बर संघ का एक प्रमुख नेता था । स्याद्वादरत्नाकर जैसे विशाल और प्रभावशाली तर्क ग्रन्थों के प्रणेता प्रखरवादी देवमूरि और विश्वविश्रुत आचार्य हेमचन्द्र का यह अनन्य अनुरागी था। वि. सं. ११८१ की वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धराज जयसिंह की अध्यक्षता में, जैन धर्म की श्वेताम्बर और दिगम्बर नाम की * देखो, मुद्रितकुमुदचन्द्र प्रकरणम्, पृ. ३९ पर का-'सिधभूपालबालमित्रम् ' वाला विशेषण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003432
Book TitleDropadiswayamvaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1928
Total Pages52
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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