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इन पद्यों के अवलोकन से सिद्धपाल की कवित्वशक्ति का भी मर्मज्ञ पाठकों को खयाल आ सकेगा । इस ग्रन्थ से ऐसा भी ज्ञात होता है कि कुमारपाल कभी कभी सिद्धपाल से शान्ति और निवृचिजनक आख्यान भी सुने करता था । ऐसा एक संपूर्ण आख्यान इस ग्रन्थ में दिया हुआ है और उस के प्रारंभ में ऐसा उल्लेख किया हुआ है:
कइयावि निष- नियुतो कहइ कहं सिद्धपाल- कई । ( कदापि नृपनियुक्तः कथयति कथां सिद्धपालकविः । )
इन उल्लेखों से जाना जाता है कि, सिद्धपाल अच्छा कवि, उच्च दर्जेका गृहस्थ और कुमारपाल राजा का विशेष प्रीतिपात्र था । सोमप्रभाचार्यने अपने ग्रंथ ( कुमारपाल प्रतिबोध ) की समाप्ति वि. सं. १२४१ में की और तब तक यह कवि जीवित था । इस के अतिरिक्त अधिकवृतान्त उपलब्ध नहीं और ऊपर दिये गये सरीखे प्रकीर्ण पद्यों के सिवा कोई स्वतंत्र कृति भी प्राप्त नहीं ।
सिद्धपाल के पिता का नाम श्रीपाल था । यह सचमुच ही ' महाकवि ' था । ' कविराज ' या ' कविचक्रवर्ती ' इस का बिरुद था । प्रभावकचरित्र, प्रबन्धचिन्तामणि, चतुरर्विंशतिप्रबन्ध, मुद्रितकुमुदचन्द्रप्रकरण, और कुमारपालप्रबन्धादि अनेव ; ग्रन्थो में इस का वर्णन और नामोल्लेख मिलता है । गुजरात वे महामात्य वस्तुपाल, राज पुरोहित सोमेश्वर, ठक्कुर अरिसिंह आदि
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