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________________ व्यक्तित्व दर्शन र गौतम के इस प्रकार के निश्छल स्नेह एवं सन्मान भरे वचनों को सुनकर परिव्राजक स्कन्दक पुलकित हो उठा । साथ ही उसके हृदय की गुप्त जिज्ञासा की चर्चा सुनकर उसे सुखद आश्चर्य भी हुआ। भगवान की सर्वज्ञता की बात जो उसने सुनी थी उस पर सहज ही विश्वास होने लगा। और वह इस प्रकार प्रसन्नभाव से गौतम के साथ भगवान के चरणों में आकर वन्दन नमस्कार करके उपस्थित हुआ। स्कन्दक ने प्रभु से अपनी शंकाओं का समाधान पाया, सम्यग दृष्टिप्राप्त हुई और वह सर्वात्मना प्रभु के चरणों में समर्पित हो गया । __ भगवती सूत्र के वर्णनों से ज्ञात होता है कि स्कन्दक ने भगवान से जिन प्रश्नों का समाधान पाया तथा प्रकार के प्रश्न उस युग के दार्शनिक मस्तिष्क में चारों ओर चक्कर काट रहे थे। अनेक परिव्राजक, सन्यासी तथा श्रमण उन प्रश्नों पर चिन्तन करते रहते, और यथार्थ समाधान न मिलने के कारण इधर उधर विद्वानों एवं धर्मप्रवर्तकों के द्वार पर उनका समाधान खोजने घूमते रहते थे। बुद्ध के निकट भी इसी प्रकार के प्रश्न लेकर कई जिज्ञासु आते थे किन्तु बुद्ध उन प्रश्नों को अव्याकृत६९ करार देकर उनसे छुटकारा पाने का प्रयत्न करते । जबकि महावीर इस प्रकार के प्रश्नों का समाधान करके जिज्ञासुओं को आत्मसाधना की ओर मोड़ने का उपक्रम रचते थे। स्कन्दक की घटना से ज्ञात होता है कि वह अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त कर परम सन्तुष्ट हुआ, भगवान का शिष्य बना। बारह अंगों का अध्ययन करके जैन दृष्टि का परम रहस्य वेत्ता बना और फिर सम्यग्ज्ञान पूर्वक अनेक प्रकार को तपः साधना करके समाधि मरण प्राप्त किया।७० ६९. बुद्ध ने जिन प्रश्नों को अव्याकृत कहा हैं, वे यों हैं १. क्या लोक शाश्वत है ? २. क्या लोक अशाश्वत है ? ३. क्या लोक अन्तमान है ? ४. क्या लोक अनन्त है ? ५. क्या जीव और शरीर एक है ? (अगले पृष्ठ पर देखिए) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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