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व्यक्तित्व दर्शन
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सरलता का अक्षय स्रोत
गणधर गौतम को जीवन में चरम कोटि का सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त हुई थी। भगवान महावीर के तो वे प्रिय शिष्य थे ही, उनकी अनन्य कृपा उन पर थी, और साथ ही संपूर्ण श्रमण संघ की श्रद्धा, सम्राटों और सेनापतियों का आदर सम्मान भी गौतम को प्राप्त हुआ था। इतनी श्रद्धा सम्मान पाकर भी गौतम कभी अपने को भूले नहीं थे। उनके मन में कभी अहंकार तो जगा ही नहीं। उनका व्यवहार इतना मृदु और आत्मीय होता था कि सामान्य से सामान्य जन, अबोध बालक भी उनकी ओर यों आकृष्ट हो जाता जैसे शिशु माता की ओर । उनके जीवन की सरलता एवं मृदुता का निदर्शन कराने वाली एक घटना अंतकृत् दशा में उल्लिखित है ।
एक बार भगवान महावीर पोलासपुर नगर में पधारे । वहाँ पर विजय नामक राजा था। जिसकी श्रीदेवो नाम की महारानी थो । श्रीदेवी का एक अत्यंत प्रिय सुकुमार पुत्र था अतिमुक्तक कुमार ।
गणधर गौतम पोलासपुर नगर में भिक्षा के लिए भ्रमण करते हुए उधर पहुँच गए जहाँ पर राजकुमार अतिमुक्तक अपने बाल साथियों के साथ खेल रहा था। बच्चों के खेलने के लिए एक मैदान था जिसे 'इन्द्रस्थान' कहा जाता था। गौतम जब उस इन्द्रस्थान के निकट से गुजरे तो कुमार अतिमुक्तक ने उन्हें देखा । गौतमस्वामी की विशिष्ट श्वेत वेषभूषा, और दिव्य रूप एवं मंद-मंद गति देखकर कुमार के मन में उनके प्रति कौतुहल जगा । वह कुछ देर उनकी ओर देखता रहा, फिर निकट आया तो उनकी अद्भुत सौम्यता से निर्भय होकर पूछने लगा- “भदन्त ! आप कौन हैं और किस कारण यों घर-घर में घूम रहे हैं ?'
गौतम ने मंदस्मित के साथ बालक की ओर देखा, सहज निश्छलता एवं गुलाबी सकुमारता उसके मुख पर बिखर रही थी। मधुर स्वर से गौतम ने कहा"देवानुप्रिय ! हम श्रमण निग्रन्थ हैं, भिक्षा प्राप्त करने के लिए इस प्रकार उच्च-नीचमध्यम कुलों में भ्रमण कर रहे हैं ।"
अतिमुक्तक-- "भन्ते ! आप मेरे घर से भी भिक्षा लेंगे ?"
६२. अतकृत् दशा वर्ग ६
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