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इन्द्रभूति गौतम मीमांसा एवं तर्क (न्याय शास्त्र ) ये चौदह विद्या कहलाती थी ।"" भगवान महावीर के पास प्रव्रजित होने पर उन्होंने गौतम को त्रिपदी का ज्ञान दिया, जिसके आधार पर उन्होंने अपनी विस्तार- बुद्धि के द्वारा विशिष्ट क्षयोपशम के कारण चतुदर्श पूर्वो का ज्ञान प्राप्त कर लिया । चौदह विद्याओं में जिस प्रकार वैदिक परम्परा का समस्त वांङमय समाहित हो जाता है, उसी प्रकार चौदह पूर्व में जैन दर्शन का समस्त ज्ञान विज्ञान अन्तर्हित हो जाता है । ५६ माना तो यह भी जाता है कि इन चौदह पूर्वो में संसार की समस्त विद्याओं का समावेश हो जाता है । चतुदर्शपूर्व घर के लिए संसार का कोई भी भौतिक या आध्यात्मिक ज्ञान अविज्ञात नहीं रहता । ऐसा पूर्वी के विषयानुक्रम से स्पष्ट होता है । गौतम को 'चौद्द सपुवि' कहा गया है । गौतम न केवल चौदह पूर्व के ज्ञाता थे, बल्कि उनकी रचना भी उन्होंने ही की थी, चूँकि चौदह पूर्व बारहवें अंग में समाविष्ट होते हैं, और गणधर द्वादशांगी के रचयिता माने गये हैं । इस प्रकार संपूर्ण श्रुत शास्त्र के ज्ञाता एवं रचयिता के रूप में गौतम की विलक्षण प्रतिभा एवं गहन श्र तविद्या का रूप हमारे समक्ष उजागर हो जाता है। मानस ज्ञानी
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गौतम केवल श्रुतज्ञान के ही नहीं, बल्कि मानसविद्या के भी विज्ञाता थे । वे किसी भी संज्ञीप्राणी के मनोभावों का तत्काल ज्ञान प्राप्त कर सकते
५५. षडंग मिश्रिता वेदा धर्म शास्त्र पुराणकम् । मीमांसा तर्कमपि च एता विद्याश्चतुर्दश ।
- आप ज् संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी भागा, २ पृ० ६९४ कुछ अन्तर के साथ देखिए : याज्ञवल्क्यस्मृति अ० १ श्लो० ३ विष्णुपुराण अंश ३, अ० ६, श्लो०२८
५६. चौदह पूर्व के नाम क्रमशः यों हैं—
(१) उत्पाद पूर्व, (२) अग्रायणीय पूर्व (३) वीर्यं प्रवाद पूर्व (४) अस्ति नास्ति प्रवाद ( ५ ) ज्ञान प्रवाद ( ६ ) सत्य प्रवाद ( ७ ) आत्म प्रवाद ( ८ ) कर्म प्रवाद (९) प्रत्याख्यान प्रवाद (१०) विद्यानु प्रवाद (११) अवन्ध्य पूर्व (१२) प्राणायु प्रवाद (१३) क्रिया विशाल पूर्व (१४) लोक विन्दुसार ।
- नंदीसूत्र ५७
५७. देखिए – आगम युग का जैन दर्शन -- ( पं० दलसुख भाई पृ० ८ ) समवायांग
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१४ वां एवं १४७,
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