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________________ व्यक्तित्व दर्शन स्वावलंबी श्रमण उपयुक्त विवरण से गौतम की अन्य विशिष्टताओं के साथ उनके स्वावलंबन की एक स्पष्ट तस्वीर हमारे सामने खिच आती है। जो गौतम अपने पूर्व जीवन में भारतखण्ड के मूर्धन्यविद्वान माने जाते थे, पाँच-सौ शिष्य प्रतिक्षण उनके चरणों में करबद्ध खड़े रहते, हजारों जिज्ञासु जिनके पास प्रश्नोत्तर के लिए आते और शंका समाधान कर प्रसन्न होकर लौटते, वे इन्द्रभूति गौतम जब भगवान महावीर के शिष्य बने, समस्त श्रमणसंघ में प्रथम स्थान पर आए, पांच-सौ उनके स्वयं के शिष्य एवं अन्य सभी चवदह हजार श्रमण उन्हें अपना वंदनीय, अर्हणीय एवं आदर्श समझते थे। वे गौतम भी जब आहार की आवश्यकता होती है तो स्वयं अपने हाथ से अपने भाजन (पात्र) एवं वस्त्र आदि की प्रतिलेखना करते हैं-भायण वत्थाइ पडिलेहेइ-और स्वयं ही भगवान महावीर की आज्ञा लेकर घर-घर में भिक्षाटन करते हैं । २८ गौतम का यहस्वावलंबन वस्तुतः उनके लिए कोई महत्वपूर्ण न रहा हो, किन्तु श्रमणसंघ के लिए एक दिशा दर्शक था 'अपना कार्य स्वयं करो' इस भावना का प्रबल समर्थक था। और स्वावलंबन में श्रमण शब्द को कृतार्थता का द्योतक था। दिनचर्या गौतम की चर्याविधि का वर्णन करते हुए आगमों में बताया है-गौतम स्वामी प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करते थे, द्वितीय प्रहर में ध्यान करते थे और दिन के तृतीय प्रहर अर्थात् मध्यान्होत्तर में भिक्षा के लिए स्वयं भ्रमण करते थे। भिक्षा भोजन आदि कार्य के लिए एक प्रहर समय से अधिक नहीं लगाते । चौथे प्रहर में फिर स्वाध्याय में लग जाते । रात्रि में पुन: प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय पहर में ध्यान तृतीय में नींद और चौथे प्रहर में पुन: स्वाध्याय ।२९ उस युग में सामान्यत: जैन श्रमण की २७. उवासग दशा १७७ २८. उच्चनीय-मज्झिम कुलाइं घर समुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ उवासग दशा ११७८ २९. उत्तराध्ययन २५।१२।१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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