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________________ व्यक्तित्व दर्शन ६१ दिया जाता था। अंतकृद् दशा सूत्र में राजकुमार अतिमुक्तक के साथ इन्द्रभूति गौतम का जो वार्तालाप एवं व्यवहार प्रदर्शित किया गया है उससे पता चलता है कि इतना बड़ा तत्त्वज्ञानी साधक छोटे अबोध बच्चों के साथ भी कितनी मधुरता एवं आत्मीय भावना के साथ व्यवहार करता है । राजाओं के अन्तःपुर में वे भिक्षा के लिए जाते हैं, तो वहाँ उनकी रानियों एवं दास-दासियों के साथ भी उनका व्यवहार-वर्तन बहुत ही विवेक पूर्ण एवं स्नेहसिक्त होता है ।२3 इन्द्रभूति गौतम के प्रभावशाली आकर्षक व्यक्तित्त्व के ये जो कुछ रूप आगमों के अनुशीलन से प्राप्त होते हैं उनसे ज्ञात होता है कि गौतम का आन्तरिक व्यक्तित्त्व जितना गम्भीर, प्रौढ़ एवं विराट् था बाह्य व्यक्तित्व भी उतना ही मधुर एवं चुम्बकीय था। शारीरिक सौष्ठव, लालित्य एवं व्यवहार कुशलता के कारण गौतम के प्रथम दर्शन में ही सम्पर्क में आने वाला उनके अति निकट का आत्मीय बन जाता और श्रद्धा से पूर्ण हृदय को खोलकर उनके चरणों में रख देता। तपः साधना आकर्षक व्यक्तित्व के धनी इन्द्रभूति गौतम के अंतरंग व्यक्तित्व की गहराई में उतरने से पूर्व उनके तपःपूत जीवन की एक सामान्य झांकी भी प्राप्त कर लेना आवश्यक होगा। भगवती, उपासगदशा तथा औपपातिक सूत्र आदि में गौतम के बाह्य दर्शन के आगे जो उनके आन्तरिक तपस्वी जीवन की स्वणिम रेखायें खींची गई हैं वे बहुत ही अर्थपूर्ण एवं विशिष्ट तपः साधना की द्योतक हैं। उनके लिए प्रयुक्त विशेषणों पर विचार करने से लगता है कि भगवान महावीर के शासन में २१. जहा गोयम सामी-अनुत्तरोपपातिक (धन्य अणगार वर्णन) देखिए---का चित्रण २२. अंतकृद्दशा वर्ग २३. विपाकसूत्र १ । मगादेवी के साथ वार्तालाप का चित्रण २४. उग्गतवे, दित्ततवे, घोरतवे, महातवे, उराले, घोर गुणे, घोर तवस्सी, घोर बंभचेरवासी उच्छूढसरीरे, संखित्तविउल तेउलेस्से, छट्ठ-छट्टणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावे मारणे विहरई । -उपासग दशा १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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