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इन्द्रभूति गौतम
है । जैन परम्परा में तिरसठ शलाका पुरुष ( महापुरुष ) हुए हैं, उन सबका शारीरिक संगठन, संस्थान, आकार अत्युत्तम होता है ।" उनके शरीर की प्रभा निर्मल स्वर्ण रेखा जैसी होती है ।" औपपातिक सूत्र में विस्तार के साथ भगवान महावीर के बाहरी व्यक्तित्व का वर्णन किया गया है, वहाँ बताया है कि उनकी आँखें पद्मकमल के समान विकसित, ललाट अर्ध चन्द्र के समान दीप्तियुक्त थे । वृषभ के समान मांसल स्कन्ध थे । भुजाएँ लम्बी थीं । पूरा शरीर सुगठित एवं सुन्दर आकार वाला था -- प्रज्वलित निघूम अग्नि की शिखा के समान तेजस्वी था । जिसे देखते ही मन मुग्ध हो जाता, आँखें बारबार देखने को लालायित होतीं और दर्शन के साथ ही मन में प्रियता एवं भव्यता का भाव जाग पड़ता । इसी प्रकार उत्तराध्ययन सूत्र के बीसवें अध्ययन में मगध सम्राट कि अनाथी मुनि के प्रथम दर्शन ( समागम ) से प्रभावित हुआ था । अनाथी मुनि नानाकुसुमों से आच्छादित मण्डीकुक्षी उद्यान के घने वृक्षों की शीतल छाया में साधनारत बैठे थे । उनकी आकृति सुकोमल एवं भव्य थी मुख मण्डल से असीम शान्ति टपक रही थी । वन क्रीड़ा के श्र ेणिक ने ज्यों ही उन्हें देखा, तो मुख से यह स्वर लहरी - फूट कैसा रूप ! इस आर्य की कैसी सौम्यता ! कैसी इसकी क्षमा ! कैसा इसका त्याग ! कैसी इनकी भोग निस्पृहता । """ जैन सूत्रों में आचार्य की आठ सम्पदा बतलाई गई हैं। उसमें (शरीर सम्पदा ) रूपसम्पदा भी एक प्रमुख सम्पदा मानी गई है । रूपवान होना आचार्य का एक अतिशय है । महाकवि अश्वघोष ने बुद्ध के शारीरिक गठन, सौन्दर्य एवं प्रभविष्णुता का वर्णन करते हुए लिखा है-उस तेजस्वी मनोहर
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तारुण्य के ओज के साथ
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८. (क) प्रज्ञापना सूत्र २३,
(ख) त्रिषष्टि शलाका ०
९. हारिभाद्रिीयावश्यक, प्रथम भाग गा. ३६२-६३
१०. अवदालिय पुंडरीयणयणे" "चन्दद्धसमणिडाले-वरमहिस- वराह-सीह सद्दल उसभ नागवरपडिपुण्ण विउल क्खंधे
औपपातिक सूत्र १
११. अहोवण्णो अहो रूवं, अहो अज्जस्स सोमया ।
अहो खन्ती अहो मुत्ती, अहो भोगे असंगया |
१२. दशाश्र तस्कन्ध ४. स्थानांग ८.
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लिए आये हुए मगधराज
पड़ी - " कैसा वर्ण !
-- उत्तराध्ययन सूत्र, अ० २०, गा. ६
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