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व्यक्तित्व दर्शन
जैसा पूर्व लिखा जा चुका है - इन्द्रभूति गौतम के सम्बन्ध में भगवती सूत्र प्रारम्भ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण परिचय दिया गया है । ठीक वही शब्दावली उपासक दशा औपपातिक सूत्र में उट्टं कित की गई है । उस परिचय से ज्ञात होता है कि गौतम जितने बड़े तत्त्वज्ञानी थे, उतने ही बड़े साधक भी । श्रुत एवं शील की पवित्र धारा से उनकी आत्मा सम्पूर्ण रूप के परिप्लावित हो रही थी। एक और वे उग्र तपस्वी घोर तपस्वी जैसे विशेषणों से विभूषित किये जाते हैं, तो दूसरी ओर 'सव्वक्खर सन्निवाई' वर्णमाला के समस्त अक्षर संयोगों के विज्ञाता, समस्त वाङमय अधिकृत ज्ञाता भी बताये गये हैं । उनके तत्वज्ञान एवं साधक जीवन की स्वर्णिम रेखाओं को अंकित करने से पूर्व हम गणधर गौतम के बाह्य व्यक्तित्त्व का सामान्य परिचय भी भगवती सूत्र की शब्दावली से प्राप्त कर लेते हैं ।
सुन्दरता : एक पुण्योपलब्धि
मनोविज्ञान का सिद्धान्त है कि किसी भी व्यक्तित्व का अन्तरंग दर्शन करने से पूर्व ही दर्शक पर उसके बाह्य व्यक्तित्व ( Personality) का प्रभाव पड़ता है । प्रथम दर्शन में ही यदि व्यक्ति प्रभावित हो जाता है तो उसके भावी सम्पर्क भी उस व्यक्तित्व से अवश्य प्रभावित रहते हैं । गुजराती में कहावत है- "जेना जोया नथी मरता तेना माऱ्यां सूं मर" - परिचय एवं प्रभाव की दृष्टि से पहला सम्पर्क ही महत्वपूर्ण माना जाता है । यदि व्यक्ति के चेहरे पर ओज, प्रभाव चमक रहा हो, उसकी आकृति में सौन्दर्य छलक रहा हो, आँखों में तेज, मुख पर मंदस्मित, शारीरिक गठन की भव्यता और सुन्दरता हो तो भले ही उस व्यक्तित्व की गहराई में कुछ हो या न हो, पर उसका पहला दर्शन व्यक्ति को अवश्य ही प्रभावित कर देता है । यदि बाह्य सुन्दरता के साथ आन्तरिक सौन्दर्य भी परिपूर्ण हो तो वहाँ 'सोने मे सुगन्ध' की उक्ति चरितार्थ हो जाती है । यही कारण है कि संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनका बाह्य व्यक्तित्व भी प्रायः आकर्षक एवं प्रभावशाली रहा
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उपासक दशा १।७६
औपपातिक सूत्र ३७ (सुत्तागमे) द्वितीय खण्ड, पृ० २४
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बाह्य व्यक्तित्व
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