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इन्द्रभूति गौतम
विरोधी कार्य-सा ही था।२९ यही कारण है कि प्रारम्भ में कुछ वैदिक आचार्यों ने कुछ स्थितियों में स्त्री को सन्यास ग्रहण करने की आज्ञा दी थी। किन्तु उत्तरवर्ती आचार्यों ने उसका कड़ा विरोध किया ३१ और उसे एक पाप कर्म तक की संज्ञा दी ।३२ बौद्ध परम्परा भी प्रारम्भ में स्त्री को दीक्षा देने के प्रश्न पर इन्कार करती रही। आनन्द के अत्यधिक आग्रह पर बुद्ध ने सर्व प्रथम प्रजापति गौतमी को दीक्षा दी।३३
२९. उत्तराध्ययन सूत्र में ब्राह्मण वेषधारी इन्द्र ने नमिराजर्षि से कहा है-'राजन् !
गृहवास घोर आश्रम है, तुम इसे छोड़कर दूसरे आश्रम में जाना चाहते हो, यह उचित नहीं।"
-उत्त० ९।४२-४४ इस सम्वाद से प्रकट होता है कि न केवल स्त्रियों के लिए, बल्कि पुरुषों के लिए भी गृहस्थाश्रम ही श्रेष्ठ माना जाता था। वाशिष्ट धर्मशास्त्रकार ने तो सब आश्रमों में गृहस्थाश्रम की ही श्रेष्ठता प्रतिपादित की हैचतुर्णामाश्रमाणां तु गृहस्थश्च विशिष्यते
-वाशिष्ट धर्मसूत्र ८।१४ ३०. महाभारत १२।२४५ । ३१. स्मतिचन्द्रिका व्यवहार पृ० २५४ में उधृत आचार्ययम का मंतव्य ३२. अविस्मृति १३६-१३७, ३३. एक बार बुद्ध कपिलवस्तु के न्यग्रोधाराम में रह रहे थे। उनकी मौसी
प्रजापति गौतमी उनके पास आई और बोली-भंते ! अपने भिक्षु संघ में स्त्रियों को भी स्थान दें।' बुद्ध ने कहा- यह मुझे अच्छा नहीं लगता।" गौतमी ने दूसरी बार और तीसरी बार भी अपनी बात दुहराई पर उसका परिणाम कुछ भी नहीं आया।
कुछ दिनों बाद जब बुद्ध वैशाली में विहार कर रहे थे, गौतमी भिक्षुणी का वेष बनाकर अनेक शाक्यस्त्रियों के साथ आराम में पहुंची। आनन्द ने उसका यह स्वरूप देखा। दीक्षा ग्रहण करने की आतुरता उस के प्रत्येक अवयव से टपक रही थी। आनन्द को दया आई । वह बुद्ध के पास पहुँचा और निवेदन किया-भंते ! स्त्रियों को भिक्षु संघ में स्थान दें।" दो तीन बार कहने पर भी कोई परिणाम नहीं निकला। अन्त में आनन्द ने कहा-"यह महाप्रजापति गौतमी है, जिसने मातृ-वियोग में भगवान को दूध पिलाया है, अतः इसे अवश्य प्रव्रज्या मिले।"
अन्त में बुद्ध ने आनन्द के अनुरोध को माना, और कुछ नियमों के साथ उसे संघ में स्थान देने की आज्ञा दी।
-विनय पिटक, चुल्लवग्ग, भिक्खुणी स्कन्धक-१०, १, ४
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