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आत्म-विचारणा
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महावीर के शिष्य बन गए। भगवान महावीर के द्वितीय समवसरण में, एक ही दिन में इस प्रकार ग्यारह महापंडित एवं उनके चवदहसौ चवालीस शिष्यों ने दीक्षा धारण को, और भगवान महावीर ने वैसाख सुदी ११ को धर्मतीर्थ की स्थापना की ।२५ इसी समय राजकुमारी चंदना जो कौशाम्बी में थी, भगवान महावीर का केवल ज्ञान संवाद सुनकर पावापुरी में पहुँची ।२६ प्रभु के चरणों में दीक्षा की प्रार्थना की और अनेक राजकुमारियों व कुटुम्बि नियों के साथ उसने भी दीक्षा ग्रहण को, और वह साध्वी समुदाय में अग्रणी बनी ।२० संभवतः आर्या चन्दना की दीक्षा भी उस युग में एक सामाजिक तथा धार्मिक क्रांति का सूत्रपात था। चूंकि अब तक चली आई वैदिक परम्परा में प्रथम तो नारी को वेदाध्ययन एवं धामिक क्रिया काण्डों से दूर ही रखा गया था। फिर गृहत्याग कर सन्यास ग्रहण करना तो प्राय: समाज
२४. महाकुलाः महाप्राज्ञाः संविग्ना विश्ववंदिता।
एकादशाऽपि तेऽभूवन्मूलशिष्या जगद्गुरोः ।।
-त्रिषष्टि० पर्व १० सर्ग ५
२५. श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार भगवान महावीर ने वैसाख शुक्ल ११ को
महसेन वन में तीर्थ स्थापना की । जबकि दिगम्बर मान्यता इस सम्बन्ध में भिन्न विचार प्रस्तुत करती है । उनके अनुसार तीर्थंकर महावीर के साथ गणधरों का समागम कैवल्य के दूसरे दिन पावापुरी में नहीं, किन्तु छियासठ दिन के बाद राजगृह में हुआ, और वहीं तीर्थ प्रवर्तन हुआ। देखिए कषायपाहुड की टीका पृ० ७६ । तीर्थ प्रवर्तन की तिथि भी श्रावण कृष्ण प्रतिपदा मानी गई
है । देखिए-षट्खंडागम धवला पृ० ६३ २६. त्रिषष्टिशलाका० पर्व १० सर्ग ५ २७. कल्पसूत्र (सुबोधिका) सूत्र १३५ सूत्र ३५६ २८. देखिए—(क) शतपथ ब्राह्मण १३, २, २०, ४,
(ख) अस्वतंत्रा धर्मे स्त्री-गौतम धर्मसूत्र १८, १ (ग) अस्वतंत्रा स्त्री पुरुष प्रधाना-वासिष्ठ ० ५, १ (घ) महाभारत, अनु० २०, १४, (च) मनुस्मृति ९-३
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