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इन्द्रभूति गौतम
बतला सकते थे ? वे पहले क्षण ही महावीर के गूढ़तम प्रभाव में आ गये । फिर भी अपनी वाद विधि के अनुसार महावीर से प्रश्नोत्तर करने को प्रस्तुत हुए और बोले- "हाँ ! मैं आपकी वाणी की यथार्थता को मानता हूँ। जीव के अस्तित्व विषय में मुझे संदेह है, क्या आप जीव के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं, और उसे तर्क, हेतु एवं प्रत्यक्षादि प्रमाण के द्वारा सिद्ध कर सकते हैं ? ६ मैं तो मानता हूँ वह् प्रत्यक्ष-सिद्ध नहीं है, जिस प्रकार घट-पट आदि पदार्थ प्रत्यक्ष में दिखलाई देते हैं, उस प्रकार आत्मा का दर्शन प्रत्यक्ष में नहीं हो सकता। और जो प्रत्यक्ष-सिद्ध नहीं, उस सम्बन्ध में अनुमान प्रमाण भी नहीं चल सकता। चूंकि अनुमान का भी हेतु (चिन्ह) प्रत्यक्ष-गम्य होना चाहिए। धुएँ को देखकर अग्नि का अनुमान किया जाता है, चूंकि धुआ जो कि अग्नि का अविनाभावि हेतु है, उसे हम प्रत्यक्ष में कभी अग्नि के साथ देख चुके होते हैं, इसलिए धुएँ को देखकर परोक्ष अग्नि को अनुमान द्वारा जाना जा सकता है, पर आत्मा का ऐसा कोई हेतु हमारे समक्ष नहीं है, जिसका आत्मा के साथ अविनाभाविसंबन्ध रहा हो और वह प्रत्यक्ष में कभी देखा गया हो । इसलिए आत्मा न प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध है और न परोक्ष-अनुमान से ।
आगम प्रमाण से भी सिद्ध नहीं
__ अब रहा-आगम प्रमाण । आगम प्रमाण से भी आत्मा-जीव का अस्तित्त्व सिद्ध नहीं हो सकता । प्रथम तो आगम प्रमाण अनुमान प्रमाण का ही अंग है । फिर आगम प्रमाण स्वयं एक विवादास्पद विषय है । स्वर्ग नरक आदि अदृष्ट विषयों का प्रतिपादन करने वाले आगम के कर्ता आप्तपुरुष ने भी आत्मा का कभी प्रत्यक्ष दर्शन किया हो, यह सम्भव नहीं है । और फिर उनके प्रतिपादन में भी परस्पर विरोध है। कोई कहता है—यह संसार उतना ही है जितना इन्द्रियों द्वारा दिखलाई पड़ता है। अर्थात् आत्मा इन्द्रियों से दिखलाई नहीं पड़ता इसलिए आत्मा नामक कोई स्वतन्त्र तत्त्व नहीं है । भूत समुदाय से विज्ञानधन उत्पन्न होता है और भूतों के विलय के साथ ही वह नष्ट हो जाता है । परलोक नाम की कोई वस्तु भी नहीं है। इसके
६. अस्ति कि नास्ति वा जीवस्तत्स्वरूपं निरुप्यताम् । ---उत्तर पुराण-७४।३६१ ७. एतावानेव लोकोऽयं यावानिन्द्रिय गोचरः। --चार्वाक दर्शन (षड्दर्शन ८१) ८. विज्ञानघन एवतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय
तान्येवानुविनश्यति न च प्रत्य संज्ञाऽस्ति । बृहदा० २।४।१२
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