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________________ ३६ इन्द्रभूति गौतम रूप में पड़ चुका था । इन्द्रभूति आयु में महावीर से ज्येष्ठ थे । महावीर लगभग बयालीस वर्ष के थे' जब कि इन्द्रभूति पचास को पार कर रहे थे । अध्यात्मज्ञान में भी वे महावीर से अपने को श्रेष्ठ समझ रहे होंगे । ब्रह्मत्व का गौरव जो कि अहंकार का ही एक पर्याय था, उन्हें अपने को भारत का एक महानतम विद्वान, गुरु एवं प्रभावशाली याज्ञिक तथा धर्मयोद्धा के रूप में देख रहा था, और महावीर को एक नवोदित तत्वज्ञानी, अधिक से अधिक नौसिखिया धार्मिक मल्ल से अधिक नहीं मान रहा होगा । इसलिए वाद विवाद में महावीर को चुटकियों में पराजित करने का मनोवेग उनके भीतर मचल रहा होगा । किन्तु जब वे महसेन वन के निकट पहुंचे, महावीर के समवसरण की अलौकिक छटा देखी, असंख्य असंख्य देवताओं को उनके चरणों में भक्तिपूर्वक वंदन करते देखा, उनकी दिव्य ध्वनि का मनोहारि घोष सुना । तो उनकी पूर्व धारणाएं निरस्त हो गईं। अभिमान, अहंकार तथा मात्सर्य की भावनाओं का मालिन्य धुल गया । महावीर के प्रति उनके मन में एक आकर्षण का भाव जगा, श्रद्धा की हिलोरें उठने लगी, और मन करने लगा जैसे अभी इनके चरणों में सिर झुका कर समर्पित हो जायें । इन्द्रभूति समझ नहीं पा रहे थे २. ३. ४. में क्षत्रिय श्रेष्ठ है । जो विद्या एवं आचरण से युक्त है, वह देव मनुष्यों में श्र ेष्ठ है ।" मैं इसका अनुमोदन करता हूँ ।" दीर्घनिकाय ३|४| पृ० २४५ | बृहदारण्यक उपनिषद् में भी इस विचार की प्रतिध्वनि मिलती है - "क्षत्रिय से उत्कृष्ट कोई नहीं है । उसी से राजसूय यज्ञ में ब्राह्मण नीचे बैठ कर क्षत्रिय की उपासना करता है । वह क्षत्रिय में ही अपने यश को स्थापित करता है ।" - बृहदारण्यक १|४|११, पृ० २८६ (क) कल्पसूत्र सूत्र ११६, (ख) आचारांग २ आवश्यक नियुक्ति गाथा ६५० भगवान महावीर की प्रथम देशना (वेसे द्वितीय) एवं तीर्थ प्रवर्तन पावापुरी महसेन वन में हुआ इस मान्यता के साथ दिगम्बर परम्परा मत भेद रखती है । कषायपाहुड की टीका ( पृ०७३ ) के अनुसार भगवान महावीर एवं गणधरों का वार्तालाप एवं तीर्थप्रवर्तन राजगृह के विपुलाचल पर्वत पर हुआ । यद्यपि केवलज्ञान वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजु वालुका नदी के किनारे हुआ इस बात का समर्थन वहाँ भी मिलता है— वैशाखे मासि सज्योत्स्न दशम्यामपराह्न के Jain Education International - महापुराणे उत्तर पुराण ७४ । ३५० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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