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सांस्कृतिक अवलोकन
पर चोट करते हुए ये विमान सीधे आगे निकल गये। आर्य सौमिल से पूछा-'आर्य, आज पावापुरी में कौन आया है ?
आर्य सोमिल-"आपने नहीं सुना ?" इन्द्रभूति-'नहीं।'
सोमिल-क्षत्रिय कुमार वर्धमान । लगभग तेरह वर्ष पूर्व इन्होंने गृह त्यागकर प्रवज्या ग्रहण की थी। राजकुमार अवस्था में ही ये वर्णाश्रम, एवं यज्ञविरोधी विचारों को प्रोत्साहित करने में अग्रणी रहे हैं । अनेक राजन्यों एवं शासकों को इन्होंने अपने प्रभाव में लिया है । और अब तपस्या के द्वारा सिद्धि प्राप्त कर पावापुरी में आकर अपने सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार में यह विशाल आडम्बर कर रहे हैं । असंख्य देवताओं को भी उन्होंने अपने वश में कर लिया है।
इन्द्रभूति—अच्छा ! वेद विरोध ! वर्णाश्रम विरोध ! यज्ञ निषेध ! और इसके लिए इतना संगठित व बलशाली-आन्दोलन । अच्छा, देखता हूँ मैं क्या शक्ति है वर्धमान में ! जो हमारे विरोध के समक्ष डट सके । आर्य सोमिल ! लगता है वर्धमान ने कुछ तपस्या करके ऐन्द्रजालिक सिद्धियाँ प्राप्त की हैं । जनता को भ्रम एवं मायाजाल में डाल रहा है । पर यह अन्धकार कब तक ? जब तक इन्द्रभूति के आजस्व-वर्चस्व का प्रभाव पूर्ण सहस्रांशु वहाँ पहुँच न जाय ।
सोमिल-हाँ, सत्य है आर्य ! श्रमण वर्धमान की उठती हुई शक्ति का प्रतिरोध करना ही होगा। नदी के बहाव को प्रारम्भ में ही मोड़ देना चाहिए अन्यथा वह बल पकड़ लेता है । श्रमण वर्धमान के पीछे अनेक क्षत्रिय शासकों का पृष्ठ बल है। वैशाली गणराज्य के अध्यक्ष चेटक जो प्रारम्भ से ही हमारी वैदिक परम्परा के विरोधी रहे हैं, वर्धमान के मातुल है । मगध, वैशाली, कपिलवस्तु आदि अनेक जन पदों में वेद विरोधी विचारों का तूफान उठ रहा है ।३८ और इधर श्रमण वर्धमान भी केवल्य प्राप्त करके पावा में आ चुके हैं। सहस्रों देवगण भी इनके उपदेश सुनने
३८. भगवान महावीर के लगभग १० वर्ष पश्चात् बुद्ध ने बोधिलाभ प्राप्त किया।
जब भगवान महावीर को कैवल्य हुआ तब बुद्ध को तपस्या करते हुए ३ वर्ष हो चुके थे। बुद्ध के गृह त्याग की मगध में काफी हलचल थी :--देखिए आगम और त्रिपिटक: एक अनुशीलन-पृ० ११७
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