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इन्द्रभूति गौतम
अरुणउद्दालक, आरुणि आदि ऋषियों का भी पैतृक नाम गौतम था। यह कहना कठिन है कि इन्द्रभूति गौतम का गोत्र क्या था, वे किस ऋषि गंश से सम्बद्ध थे ? पर इतना तो स्पष्ट है कि गौतम गोत्र के महान गौरव के अनुरूप ही उनका व्यक्तित्व बहुत विराट् एवं प्रभावशाली था । दूर-दूर तक उनकी विद्वत्ता की धाक थी। पांच सौ छात्र उनके पास अध्ययन करने के लिए रहते थे। उनके व्यापक प्रभाव के कारण ही सोमिलार्य ने इस महायज्ञ का धार्मिक नेतृत्व इन्द्रभूति के हाथ में सौंप दिया था। विभिन्न जनपदों से हजारों विद्वान, ब्रह्म कुमार उस महायज्ञ में भाग लेने आए थे। मगध जनपद के हजारों नागरिक दूर-दूर से इस यज्ञ की ख्याति सुनकर देखने को उपस्थित हुए थे।
पावापुरी में भगवान महावीर
भगवान महावीर केवल ज्ञान प्राप्त कर जब पावापुरी में पधारे तो हजारों नरनारी उनकी धर्म देशना सुनने को उमड़ पड़े । देवताओं ने समवशरण की रचना की । आकाश में भगवान महावीर को जयजयकार करते हुए असंख्य देव, विमानों से पुष्प वर्षाते हुए समवशरण की ओर आने लगे।
निराशा और जिज्ञासा
यज्ञवाटिका में बैठे हुए विद्वानों ने आकाशमार्ग से आते हुए देवगण को देखा तो रोमांचित होकर कहने लगे "देखिए, यज्ञ माहात्म्य से आकृष्ट होकर आहुति लेने के लिए देवगण भी आ रहे हैं।" हजारों लाखों आँखें आकाश की ओर टकटको लगाए देखती रहीं। पर जब देव विमान यज्ञ मण्डप के ऊपर से सीधे ही आगे निकल गये तो एक भारी निराशा से सबकी आँखें नीचे झुक गयीं, मुख मलिन हो गये; और आश्चर्य के साथ सोचने लगे-"यह क्या है ? क्या देवगण भी किसी की माया में फँसगए हैं ? या भ्रम में पड़ गए हैं ? यज्ञमण्डप को छोड़कर कहाँ जा रहे हैं ?" इन्द्रभूति ने देखा-यह तो उनके साथ मजाक हो रहा है। देवविमानों को देखकर उन्होंने ही तो यज्ञ की महिमा से मण्डप को गुंजाया था और अब उन्हीं के अहंकार
३७. भारतवर्षीय प्राचीन चरित्र कोश पृ० १९३-१९५
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