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सांस्कृतिक अवलोकन
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समानता । वैदिक परम्परा ने ब्राह्मण की श्रेष्ठता को चरमकोटि पर पहुंचा कर अन्य वर्गों को उससे निम्न एवं धार्मिक अधिकारों से वंचित रखा । आरण्यक कों एवं ब्राह्मणों ने ब्राह्मण की श्रेष्ठता के डिडिमनाद में यहां तक कह डाला-समस्त देवता ब्राह्मण में निवास करते हैं ।" वह विश्व का दिव्य वर्ण है । २२ ब्राह्मण का जातीय अहंकार आकाश को चूमने लगा तो धीरे-धीरे अन्य वर्गों में उसके प्रति विद्वष एवं विरोध की आग सुलगने लगी। क्षत्रिय वर्ग ने उसकी श्रेष्ठता को चुनौती दी ।२२ उन्होंने कहा-श्रमण अपने गोत्र कुल आदि का अभिमान नहीं करता ।" वह सदा समता से युक्त रह कर सब में समत्व दर्शन करता है ।२५
ब्राह्मण की श्रेष्ठता के दो आधार स्तंभ थे । एक याज्ञिक कर्मों में उसकी अनिवार्यता तथा दो-ज्ञान में श्रेष्ठता। सत्ता के इन दोनों उद्गमों पर क्षत्रियों ने कड़ा प्रहार किया, याज्ञिक कर्मों का प्रतिरोध करके, एवं आत्मविद्या में अग्रगामी बन कर ।२६
आत्मविद्या के पुरस्कर्ता
इतिहास में इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि भगवान महावीर से पूर्व भी मगध में अनेक क्षत्रिय राजा एवं राजकुमार तत्व ज्ञान, आत्मविद्या आदि गम्भीर विषयों के उपदेष्टा एवं प्रचारक रहे हैं । अनेक ब्राह्मण कुमार तथा ऋषिजन इन राजाओं के पास आकर आत्म विद्या का ज्ञान प्राप्त करते आये हैं । कुछ विचारकों का मत है, भारतवर्ष में आत्मविद्या के पुरस्कर्ता क्षत्रिय ही रहे हैं । विदेहराज जनक स्वयं वेदों तथा उपनिषद् के गम्भीर विद्वान थे।२८ कैकेय नरेश अश्वपति के पास
२१. एते वै देवाः प्रत्यक्ष यद् ब्राह्मणाः -तैत्तिरीय संहिता १-७-३१ २२. दैव्यो वै वर्णो ब्राह्मणः । -तैत्तिरीय ब्राह्मण १, २, ६ २३. शतपथ ब्राह्मण १४, १, २३ २४. सूत्रकृतांग १ । २।१।१ २५. सुत्तनिपात २३ । ११ २६. भारतवर्ष का सामाजिक इतिहास पृ० २५ २७. आत्म विद्या के पुरस्कर्ता क्षत्रिय ही थे—इसके प्रमाण में देखें 'उत्तराध्ययन :
एक समीक्षात्मक अध्ययन,' (मुनि नथमल) पृ० १४ ।
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