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________________ १४ इन्द्रभूति गौतम चिंतन एवं ऊर्ध्वमुखी विकास की कहानी प्रस्तुत कर रही है ।" मगध जनपद की दो नगरियां पावा पुरो एवं राजगृही ( मगध ) उन दिनों सांस्कृतिक एवं धार्मिक जागरण का केन्द्र बनी हुई थी । उत्तर भारत से आये हुये आर्य पूर्व भारत में बस कर नई धार्मिक चेतना के अग्रणी बन रहे थे । क्षत्रिय, जो कि मुख्यत: श्रमण परम्परा के अनुयायी थे, इनमें प्रमुख थे, और वे यज्ञवाद, बहुदेववाद एवं जातिवाद के विरोध में खुलकर अहिंसा, जातिप्रतिरोध एवं धार्मिक समानता का प्रचार कर रहे थे । १७ ब्राह्मण क्षत्रिय संघर्ष उस युग में मुख्यतः वैदिक एवं अवैदिक इस प्रकार के दो वर्ग स्पष्ट रूप से सामने आ रहे थे | यज्ञ का प्रतिरोध करने वाले चाहें वे श्रमण रहे हों या ब्राह्मण, अवैदिक माने जाते थे । यही कारण है कि सांख्य दर्शन जो ब्राह्मण परम्परा की देन था उसे यज्ञ का प्रतिरोध करने के कारण कुछ लोग अवैदिक एवं श्रमण परम्परा की श्रेणी में मानने लगे थे । यज्ञ प्रतिरोध के साथ ही जातिवाद का विरोध एवं उसकी अतात्विकता की भावना अवैदिक परम्परा में प्रबल रूप से फैल चुकी थी । ऋग्वेद के अनुसारब्राह्मण, प्रजापति के मुख से उत्पन्न हुआ, क्षत्रिय बाहु से, वैश्य उदर से एवं शूद्र उसके पैरों से उत्पन्न हुआ ।" श्रमण परम्परा इस सिद्धान्त का कट्टर विरोध करके उसकी तात्विकता सिद्ध कर रही थी । तथागत गौतम बुद्ध मनुष्य जाति की एकता का प्रतिपादन बहुत ही प्रभावशाली पद्धति से करते थे । वे जन्मना जाति के स्थान पर कर्मणा जाति के समर्थक थे ।९ धीरे-धीरे इस विचार का प्रभाव उन क्षत्रियों पर भी पड़ा जो वैदिक परम्परा से सम्बद्ध थे । इसका है ।" वे भी आचरण से ही ब्राह्मण की श्र ेष्ठता का विचार धारा के साथ संघर्ष का तीसरा प्रधान कारण था समत्व भावना व धार्मिक प्रमाण महाभारत में मिलता उद्घोष करने लगे । वैदिक १६. विशेष वर्णन के लिए देखें 'संस्कृति के चार अध्याय २ ( रामधारीसिंह दिनकर ) १७. देखिए — भारत वर्ष का सामाजिक इतिहास । (डा० वि० सी० पाण्डे) पृ० २३-२४ १८. ऋगवेद मं० १० अ० ७ सू० ९१, मं० १२ १९. सुत्तनिपात ( वासेट्ठ सुत्त) २०. महाभारत शांति पर्व २४५।११-१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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