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________________ सांस्कृतिक अवलोकन कैवल्य महोत्सव का पवित्र दिन था। भगवान महावीर को कैवल्य प्राप्त होते ही एक बार अपूर्व प्रकाश से सारा संसार जगमगा उठा । दिशाएँ शांत एवं विशुद्ध हो गई थीं, मन्द-मन्द सुखकर पवन चलने लगी, देवताओं के आसन चलित हुए और वे दिव्य देव दुन्दुभि का गम्भीर घोष करते हुए भगवान का कैवल्य महोत्सव करने पृथ्वी पर आये । भगवान महावीर जंगल में थे, अतः केवल ज्ञान प्राप्त होते ही उनकी प्रथम प्रवचन सभा में कोई मनुष्य नहीं पहुंच सका । देवों का अगणित समूह उनकी वैराग्यपीयूष-वर्षी वाणी से गद्गद् अवश्य हो उठा; पर व्रत और संयम स्वीकार करके महावीर की प्रथम देशना की सफलता सिद्ध करना देवों के लिये असंभव था। इस दृष्टि से भगवान महावीर का प्रथम प्रवचन निष्फल गया ऐसा भी कहा जाता है ।५ जम्भिया ग्राम से विहार कर श्रमण भगवान महावीर पावापुरी (मध्यम पावा) पधारे । पावा मगध की प्रमुख सांस्कृतिक नगरी थी। मगध की सांस्कृतिक विरासत भारत के आध्यत्मिक इतिहास में मगध का स्थान सर्वोपरि रहा है। मगध की संस्कृति में श्रमण संस्कृति के बीज प्रारम्भ से ही पलते रहे हैं। श्रमण संस्कृति के विकास एवं प्रसार में मगध का अपूर्व योग रहा है । म० महावीर तथागत बुद्ध एवं इन्द्रभूति गौतम जैसे आध्यात्मिक व्यक्तित्व मगध भूमि के गौरव की शाश्वत स्मृतियाँ हैं। जिसप्रकार भारतीय शासन में गणतंत्र का विकास एवं प्रयोग सर्वप्रथम मगध के अंचल में हुआ, उसीप्रकार भारतीय धर्म दर्शन तथा अध्यात्म क्षेत्र में, वैराग्य, सन्यास अहिंसा, मोक्ष विचार आदि की विकास भूमि भी मगध जनपद् (मगध से सम्पूर्ण पूर्व भारत की भावना लेनी चाहिए) एवं उसके पारिपाश्विक अंचल रहे हैं । मगध की यह सांस्कृतिक विरासत आज भी भारतीय जन जीवन के उदात्त १४. त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्रम्---पर्व १०, सर्ग ५, नोट-भगवान महावीर के कैवल्य वर्णन की तुलना में बौद्धों ने बुद्ध के बोधि लाभ का आलंकारिक वर्णन किया है। जातकअट्ठकथा (निदान) मे कहा हैबुद्ध ने जब बोधि लाभ प्राप्त किया तब चौरासी हजार योजन गहराई तक समुद्र का पानी मीठा हो गया । जन्मांध देखने लगे, जन्म के बहरे सुनने लगे।" १५. स्थानांग १०॥३१७७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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