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सांस्कृतिक अवलोकन
प्रश्नोत्तर एवं परिसंवाद इन्द्रभूति से सम्बन्धित हैं । भगवतो, उववाई, रायपसेणी, पन्नवणा, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि अनेक आगम व आगमों का मुख्य-भाग गणधर इन्द्रभूति के प्रश्नों पर ही निर्मित हुआ है, ऐसा निर्विवाद कहा जा सकता है ।
___ उपनिषद् कालीन उद्दालक के समक्ष जो स्थान श्वेतकेतु का है, गीतोपदेष्टा श्री कृष्ण के समक्ष अर्जुन का एवं बुद्ध के समक्ष आनन्द का जो स्थान है, वही स्थान जैनागमों में भगवान महावीर के समक्ष इन्द्रभूति गौतम का है । आगम-पृष्ठों पर इन्द्रभूति गौतम का जीवन परिचय देने वाली शब्दावली हमें कई रूपों में उपलब्ध होती है। उनके अन्तरंग एवं बाह्य व्यक्तित्व को समग्र रूप से स्पर्श करके संतुलित एवं प्रभावशाली शब्दों में व्यक्त करनेवाला एक प्रसंग भगवती सूत्र के प्रारम्भ में इस प्रकार आया है।
"उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी-शिष्य इन्द्रभूति नाम के अनगार थे। वे गौतम गोत्री थे। उनका शरीर सात हाथ ऊँचा, समचौरस संस्थान एवं वज्रऋषभनाराचसंघयन से युक्त था। उनका गौरवर्ण कसौटी पर खिची हुई स्वर्ण-रेखा के समान दीप्तिमान एवं पद्मकेसर के समान समुज्ज्वल था। वे उग्रतपस्वी, दीप्ततपस्वी, तप्ततपस्वी, महातपस्वी, उदार, घोर, घोरगुण युक्त, घोरब्रह्मचारी, शरीर की ममता से युक्त, संक्षिप्त (शरीर में गुप्त), विपुल तेजोलेश्या को धारण करने वाले, चतुर्दश पूर्व के ज्ञाता, चार ज्ञान से सम्पन्नसर्व अक्षर संयोग के विज्ञाता थे।
- आगम एवं आगमेतर साहित्य में गणधर गौतम का जो भी जीवन परिचय उपलब्ध है, उसमें यह सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वांग परिचय माना जा सकता है। उनका बाह्य दर्शन जितना आकर्षक, सुन्दर, एवं ओजस्वी है, अन्तरंग जीवन परिचय
१. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टेअंतेवासी
इंदभूईणामं अणगारे गोयमसगुत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए, वज्जरिसह- नारायसंघयणे, कणय-पुलयनिसहपम्हगोरे, उग्गतवे, दित्ततवे, तत्ततवे, महातवे, ओराले, घोरे, घोरगुणे घोरतवस्सी, घोरबंभचेरवासी, उच्छूढसरीरे, संखित्तविउल तेउलेसे, चोद्दसपुव्वी, चउनाणोवगए, सव्वक्खर सन्निवाई "..........।
-भगवती सूत्र, शतक-१ पृ० ३३ पं० बेचरदास जी द्वारा सम्पादित ।
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