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________________ इन्द्रभूति गौतम उससे अधिक तपोपूत, ज्ञानगरिमा-मंडित एवं साधना की चरम कोटि में पहुंचा हुआ है । इस महान व्यक्तित्व में ऐसी विलक्षणताएँ सन्निहित हुई हैं जिन्हें पढ़ सुन कर हृदय श्रद्धा से गद्गद् हो उठता है और बुद्धि कह उठती है-पच्चीस सौ वर्ष पूर्व का यह महान् व्यक्तित्व इन ढाई सहस्राब्दियों का अद्भुत एवं एकमेव व्यक्तित्व है। भगवान महावीर के बाद यदि कोई दूसरा सार्वभौम व्यक्तित्व जैन परम्परा में है तो वह गणधर गौतम का है। भगवती सूत्र के शब्दों की गहराई में जाए तो एक-एक शब्द के पीछे गौतम के जीवन की एक नहीं, अनेक विशेषताएं', साधना की विरल उपलब्धियाँ जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं। हम इसी परिचय रेखा के आधार पर इन्द्रभूति गौतम का जीवन परिचय बाह्य एवं अंतरंग व्यक्तित्व का एक विस्तृत जीवन दर्शन पाठकों के समक्ष उपस्थित करना चाहते हैं। जैन परम्परा में गणधर जैन इतिहास एवं परम्परा में 'तीर्थकर' शब्द जितना प्राचीन एवं अर्थ पूर्ण है, उतना ही प्राचीन एवं अर्थ पूर्ण है 'गणधर' शब्द । 'तीर्थंकर' तीर्थ अर्थात् संघ-साधु, साध्वी श्रावक-श्राविकारूप संघ के निर्माता' होते हैं तथा 'श्रुत रूप' ज्ञान परम्परा के पुरस्कर्ता होते हैं, और गणधर साधु, साध्वीरूप संघ की मर्यादा, व्यवस्था, एवं समाचारी के नियोजक, व्यवस्थापक, तथा तीर्थंकरों की अर्थ रूप वाणी को सूत्र रूप में संकलन करने वाले होते हैं। विशेषावश्यक भाष्य के टीकाकार आचार्य मल्लधारी हेमचन्द्र के शब्दों में 'उत्तम ज्ञान दर्शन आदि गुणों को धारण करने वाले गणधर होते हैं ।'3 समवायांग सूत्र तथा कल्पसूत्र स्थविरावली' प्रवचन सारोद्धार में चौबीस २. अत्थं भासई अरहा सुत्तं गुफइ गणहरा निउणा । -आचार्य भद्रबाहु ३. अनुत्तरज्ञानदर्शनादि गुणानां गणं धारयन्तीति गणधरा : -विशे० भा० टीका० गा० १०६२ । ४. समवायांग सूत्र ११-७४ ५. कल्पसूत्र (कल्पलता) पृ० २१५ ६. प्रवचन सारोद्धार द्वार १५ गा ४७-५८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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