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इन्द्रभूति गौतम व्यक्ति गौतम ही था । गौतम के दीक्षित होने के पश्चात ही संघ को स्थापना हुई,
और द्वादशांगी को साकार रूप दिया गया। आगम क्या है ? गौतम के माध्यम से एवं गौतम की जिज्ञासा का निमित्त पाकर भगवान की प्रवहमान उपदेश धारा ! प्रारंभ से अंत तक यह हम देखते हैं, कि आगम का अधिकांश भाग गौतम के जिज्ञासा भरे प्रश्नों के समाधान एवं उनको माध्यम बना कर दिए गए उपदेश से संबद्ध है। भगवान महावीर के जीवन के साथ गौतम कां घनिष्ट सम्बन्ध इस बात से स्पष्ट होता है, कि भगवान महावीर के बाद आचार्यों द्वारा लिखे गये ग्रन्थों में समय-समय पर उठने वाले प्रश्नों एवं उनके समाधानों को महावीर और गौतम के नाम से आगमों के पृष्ठों पर तथा ग्रन्थों में अंकित किए गए हैं।
इस प्रकार गौतम जिज्ञासा थे और महावीर समाधान । और जब तक भगवान महावीर ने सिद्धत्व को प्राप्त नहीं कर लिया, तब तक गौतम जिज्ञासु ही बना रहा । इसलिए भगवान महावीर का निर्वाण गौतम के लिए चिन्ता का कारण बन गया । वह सोचने लगा, कि अब मुझे मेरी जिज्ञासा का समाधान कहाँ मिलेगा ? क्योंकि तब तक उसने अपनी जिज्ञासा के समाधान को अपने अन्दर पाने के लिए प्रयास ही नहीं किया था। परन्तु भगवान के निर्वाण के बाद जब अपने आप को परखने का एवं अपनी शक्ति को अनावृत्त करने की ओर ध्यान दिया, तो तुरन्त उसका सुषुप्त जिनत्व जागृत हो गया, उसने अपने आप में महावीरत्व को पा लिया। और अब वह स्वयं जिज्ञासा न रह कर समाधान बन गया । पारस के संपर्क को प्राप्त कर लोहा सोना तो बन जाता है, पर वह पारस नहीं बन पाता। किन्तु महावीर के संपर्क से गौतम ने महावीरत्व को अथवा जिनत्व को प्राप्त कर लिया।
प्रस्तुत संदर्भ से स्पष्ट होता है, कि गौतम का व्यक्तित्व महान्, विराट् एवं तेजस्वी था। उनके व्यक्तित्व में भगवान महावीर के उच्च ज्ञान, जैन दर्शन एवं संस्कृति का हृदय छिपा है । और भगवान महावीर के लोक मंगल व्यक्तित्व का ताना बाना भी जुड़ा हुआ है।
आर्य इन्द्रभूति
आर्य इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर के प्रथम शिष्य एवं प्रथम गणधर थे। आगम ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर उनकी चर्चा आई है। अनेक प्रसंग
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