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________________ सांस्कृतिक अवलोकन सहयोग आवश्यक है। व्यक्ति का आचार ही व्यक्ति के विचार को अभिव्यक्ति दे सकता है । आचार के बिना विचार साकार रूप नहीं ले सकता । इसीप्रकार श्रद्धालु एवं कर्म-निष्ठ व्यक्ति ही महान् तेजस्वी व्यक्तित्व की तेजस्विता को जन-जन के सामने प्रकट कर सकता है । इस बात को हम यों भी कह सकते हैं कि राम, कृष्ण,बुद्ध और महावीर ज्ञान हैं, लक्ष्मण, अर्जुन, आनन्द एवं गौतम कर्म हैं। वे विचार हैं तो ये आचार हैं। इसलिए दोनों में घनिष्ठता एवं एकात्मकता है । इतिहास इस बात का साक्षी है, कि राम लक्ष्मण के सहयोग से ही वनवास में अपने व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दे सके, और लंका में राक्षसी-वृत्ति पर विजय पा सके। हम उस जीवन में लक्ष्मण को प्रत्येक कार्य में राम के साथ ही देखते हैं। कर्मयोगी कृष्ण की गीता को, उनके विचारों को आत्मसात् करके उन्हें आचरण में साकार रूप देने वाले अर्जुन को कृष्ण से अलग नहीं किया जा सकता । कृष्ण के विचारों की अभिव्यक्ति रूप अर्जुन परिलक्षित होता है । तथागत बुद्ध के साथ आनन्द का इतना घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है, कि तथागत अपने विचार एवं चिन्तन को आनन्द के माध्यम से ही जन-जन के समक्ष रखते हैं । और गौतम ने अपने व्यक्तित्व को और अपने आप को महावीर के व्यक्तित्व में इतना मिला दिया था, कि वे स्वयं महावीर से भिन्न समझते ही नहीं थे । जब भी गणधर गौतम के मन में किसी भी तरह की जिज्ञासा जागृत होती, मानस-सागर में कोई विचार उर्मी तरंगित होती, तो वे उसका समाधान अपने चिन्तन की अतल गहराई में उतर कर प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करते, बल्कि श्रमण भगवान महावीर के चरण-कमलों में पहुँच कर प्राप्त करते । यह तो मैं पूर्व स्पष्ट कर ही चुका हूँ, कि तेजस्वी व्यक्तित्व के तेज को सामान्य व्यक्ति नहीं, तेजस्वी व्यक्ति ही अपने जीवन में आत्मसात् कर सकता है। राम अपने आप में महान् थे, विराट् थे, पर उनकी महानता एवं विराटता को साकार रूप देने का माध्यम लक्ष्मण ही था । लक्ष्मण ने राम की प्रभुता को जन-जन के समक्ष प्रस्तुत किया । अर्जुन का माध्यम पाकर ही कृष्ण की वाणी मुखरित हुई, और गीता का अवतरण हुआ, जो आज भी अलसाये हुए जन मानस को पुरुषार्थ के पथ पर बढ़ने की महान् प्रेरणा प्रदान करता है । तथागत बुद्ध का बोधित्त्व भी आनन्द का सहयोग पाकर वाणी एवं भाषा के रूप में अभिव्यक्त हुआ। और हमारा आलोच्य विषय इन्द्रभूति गौतम श्री भगवान महावीर की ज्ञान साधना को अभिव्यक्ति देने का माध्यम रहा है । आगम साहित्य का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है, कि भगवान महावीर की दिव्य ज्ञान धारा को ग्रहण करने वाला प्रथम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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