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सूत्र भगवती में पूछिया जी,
प्रश्न छत्तीस हजार । अंग उपांग में पूछिया जी,
पूछा कीधी पहले पार जी। तीरथनाथ किया निस्तार जी।
गौतम लिया हिरदा में धार जी। जारी बुद्धि रो नहीं छ पार जी,
स्वामी ज्ञान तणां भण्डार जी। घणां जीवां पं कियो उपकार जी,
उण पुरुषांरी जाऊं बलिहार जी। श्री गौतम स्वामी में गुण घणा......
एक दिन गौतम मन चितवे जी,
मने क्यों न उपजे केवलज्ञान । खेद पाम्या प्रभु देखने,
बुलाया श्रीवर्धमान जी । मन वांछित देवे दान जी,
गौतम सन्मुख उभा आन जी। वीर दियो आदर सन्मान जी,
गौतम गुण-रत्नां री खान जी। चित्त निर्मल राखो ध्यान जी,
तजो मोह मत्सर अभिमान जी। छह काया ने दो अभय-दान जी,
श्री गौतम स्वामी में गुण घणा.....
थारे ने म्हारे गोयमा रे,
घणा कालनी प्रीत । आगे ही आपां भेला रह्या,
बलि लोहड़ बड़ाई नी रीत जी।
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