________________
१४८
Jain Education International
इन्द्रभूति गौतम (परिशिष्ट)
कायर कांपी जावे दूर जी, दीपे तपस्या में अतिशूर जी । आगे कर्म किया चकचूर जी,
जांरो चोखो घणो छं नूर जी । जारो भजन किया दुःख दूर जी,
म्हारी बन्दना उगते सूर जी । श्री गौतम स्वामी में गुण घणा"
अभिग्रह कीधो आकरो जी,
सूत्र भगवती रे मांय जी । चार ज्ञान चवदे पूर्व धणी,
बलि तेजु लेश्या पिण्ड मांय जी । दपटी राखी छे मन मांय जी,
दीनों ध्यानसु चित्त लगाय जी । उकडू बैठा शीस नमाय जी,
जांरी करणी में कमीय न कांय जी । जारो भजन कियां सुख पाय जी,
श्री गौतम स्वामी में गुण घणा.........
पूछा जद कीधी घणी जी,
आणी मन आनन्द जी । श्रद्धा में संशय नहीं उपनो,
उपनो केवल उछरंग जी । वांदे श्री वीर जिनन्द जी,
जाने
पूछिया देश प्रदेशनास्कन्ध जो । अनन्त ज्ञानी त्रिशलाना नन्द जी,
सूत्र मेल दिया संधो-संध जी । सेवे सुर नर वृन्द जी, तारा बीच बिराजे चन्द जी ।
श्री गौतम स्वामी में गुण घणा"
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org