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________________ परिसंवाद १२५ केशीकुमार—'आप शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीड़ित प्राणियों के लिए क्षेम ___ और शिव रूप, बाधा रहित कौनसा स्थान मानते हैं ?' । गौतम-'लोक के अग्र भाग में एक ध्र व स्थान है, जहाँ जरा, मृत्यु, व्याधि और वेदना नहीं है । किन्तु वहाँ आरोहण करना नितान्त दुष्कर है ।' केशीकुमार-'वह कौन सा स्थान है ?' गौतम- 'महर्षियों द्वारा प्राप्त वह स्थान निर्वाण, अव्याबाध्य, सिद्धि, लोकान, क्षेम, शिव और अनाबाध, इन नामों से विश्र त है। मुने ! वह स्थान शाश्वतवास का है, लोक के अग्रभाग में स्थित है और दुरारोह है। इसे प्राप्त कर भव परम्परा का अन्त करने वाले मुनिजन चिन्तामुक्त हो जाते हैं। श्रमण केशीकुमार ने चर्चा का उपसंहार करते हुए कहा-“महामुने गौतम ! आपकी प्रज्ञा उत्तम है। आपने मेरे संशयों का उच्छेद कर दिया है, अतः हे संशयातीत ! सर्व सूत्र महोदधि के पारगामिन् ! आपको नमस्कार है।" गणधर गौतम को वन्दना करके श्रमण केशीकुमार ने अपने बृहत् शिष्य समुदाय सहित उनसे पंच महाव्रत रूप धर्म को भाव से ग्रहण किया और महावीर के भिक्षु संघ में सम्मिलित हुए ।33 उदकपेढाल और गौतम नालन्दा में लेप नामक धनाढ्य गाथापति रहता था । वह श्रमणोपासक था। नालन्दा के ईशानकोण में उसने एक सुन्दर उदकशाला बनवाई थी। उस उदकशाला के निकट ही हस्तियाम नामक उद्यान के आरामागार में भगवान गौतम स्वामी ३३. उत्तराध्ययन, २३ वं अध्ययन के आधार पर ३४. प्रो० जेकोबी ने सेक्रड बुक्स आव दि इस्ट, बाल्यूम् ४५ में, तथा गोपालदास पटेल ने 'महावीर नो संयम धर्म, (हिन्दी) पृ० १२७ में उदगसाला का अर्थ स्नान गृह किया है। जबकि आचार्य हेमचन्द्र ने अभिधानचितामणिभूमिकांड, श्लोक ६७ में 'प्रपा' (प्याऊ) अर्थ किया है। यही अर्थ मागधी कोष कार शतावधानी पं० रत्नचन्द्र जी महाराज ने किया है । अर्ध मागधी कोष भा० २ पृ० २१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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