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________________ १२४ इन्द्रभूति गौतम केशीकुमार- "विज्ञवर ! वह सन्मार्ग और उन्मार्ग कौन सा है ?" गौतम-"मतिमन् ! कुप्रवचन को माननेवाले सभी पाखण्डी उन्मार्ग में चलने वाले हैं । जिन भाषित मार्ग ही सन्मार्ग है । और यह मार्ग निश्चित ही उत्तम निराबाध है।" केशीकुमार-"ऋषिवर ! महान् उदक के वेग में बहते हुए प्राणियों के लिए शरण और प्रतिष्ठारूप द्वीप आप किसे कहते हैं ?" गौतम–श्रीमन् ! एक महाद्वीप है। वह बहुत विस्तृत है। जल के महान वेग की वहाँ गति नहीं है।" केशीकुमार-प्राज्ञवर ! वह महाद्वीप कौनसा है ? गौतम-जरा-मरण के वेग से डूबते हुए प्राणियों के शिए धर्मद्वीप है, प्रतिष्ठारूप है और उत्तम शरण रूप है। केशीकुमार----''महाप्रवाह वाले समुद्र में एक नौका विपरीत दिशा में तीव्रगति से भाग रही है। आप उसमें आरूढ़ हो रहे हैं। फिर पार कैसे जा सकेंगे ?" गौतम-"जो सच्छिद्र नौका है, वह पारगामी नहीं हो सकती, किन्तु छिद्र रहित नौका अवश्य ही पार पहुंचाने में समर्थ होती है ।" केशीकुमार-'वह नौका कौनसी है ?' गौतम-'शरीर नौका है। आत्मा नाविक है । संसार समुद्र है, जिसे महर्षिजन सहज ही तैर कर पार पहुंचते हैं।' केशीकुमार----''बहुत सारे प्राणी घोर अन्धकार में पड़े हैं। इन प्राणियों के लिए लोक ___ में उद्योत कौन करता है । गौतम-"उदित हुआ सूर्य लोक में सब प्राणियों के लिए उद्योत करता है।" केशीकुमार-'वह सूर्य कौन-सा है ?' गौतम–'जिनका संसार (राग-द्वेष-मोह) क्षीण हो गया है, ऐसे सर्वज्ञ जिन भास्कर का उदय संसार में हो चुका है । वे ही सारे विश्व में उद्योत करते हैं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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