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________________ १२० इन्द्रभूति गौतम गौतम - भगवन् ! सिद्ध कहाँ जाके रुक जाते हैं, कहाँ जाके ठहरते हैं, शरीर कहाँ छोड़ते हैं, और कहाँ जाकर सिद्ध होते हैं ? भगवन् –' " गौतम ! अलोक के कारण सिद्धों की गति रुक जाती है, लोकाग्र भाग पर ठहरते हैं, यहाँ (संसार में ) शरीर को छोड़कर वहाँ, (सिद्ध शिला ) पर जाकर सिद्ध होते हैं ? ११ श्रमण केशीकुमार और गौतम एकबार मिथिला से विहार करके भगवान महावीर हस्तिनापुर की ओर पधारे । गणधर गौतम अपने शिष्य समुदाय के साथ श्रावस्ती पधारे, और निकटवर्ती कोष्ठक उद्यान में ठहरे। उसी नगर के बाहर एक ओर तिन्दुक उद्यान था, जिसमें पार्श्वसंतानीय निर्ग्रन्थ श्रमण केशीकुमार अपने शिष्य समुदाय के साथ आकर ठहरे हुए थे । श्रमण केशी कुमार कुमारावस्था में ही प्रव्रजित हो गये थे । वे ज्ञान व चारित्र के पारगामी तथा मति, श्रुत व अवधि - तीन ज्ञान से युक्त पदार्थों के स्वरूप के ज्ञाता थे । १२ उस समय गौतम व केशी कुमार के शिष्यों ने एक दूसरे को देखा, तब दोनों के शिष्य समुदाय में कुछ शंकाऐं उत्पन्न हुई – “हमारा धर्म कैसा और इनका धर्म कैसा ? हमारी आचार - धर्म - प्रणिधि कैसी और इनकी कैसी ? महामुनि पार्श्वनाथ ने चतुर्याम धर्म का उपदेश किया है और तीर्थंकर वर्धमान पाँच शिक्षारूप धर्म का ३१. औपपातिक ३ ( सिद्ध वर्णन ) ३२. श्रमण केशीकुमार के सम्बन्ध में विद्वानों में कुछ यह मत भेद है, कि ये केशी कुमार वे नहीं है जिन्होंने प्रदेशी राजा को प्रतिबोध दिया था, चूँकि राय पसेणिय में उनके सम्बंध में कहा है— चउनाणोवगए - वे चारज्ञान के धारक थे, जबकि इन केशीकुमार के लिए ओहिनाण सुए ( उत० २३ । २) श्रुतज्ञान एवं अवधि ज्ञान से युक्त विशेषण आया है । विशेष वर्णन के लिए देखें – भगवान पार्श्व: एक अनुशीलन ( देवेन्द्रमुनि) उत्तराध्ययन: एक समीक्षात्मक अध्ययन ( मुनि नथमल जी ) पृ० ४०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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