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________________ परिसंवाद ११९ भगवान गौतम ! तीन कारण से ! अहिंसा की साधना से, सत्य भाषण से, श्रमण-ब्राह्मण को निर्दोष शुद्ध आहार पानी देने से । २९ दुःखी-सुखी क्यों ? गौतम ने पूछा-भगवन् ! जीव दीर्घकाल तक दुःख पूर्वक जीने के निमित्त कर्म क्यों, व किस कारण करता है ? भगवन्—गौतम । हिंसा करने से, असत्य बोलने से तथा श्रमण-ब्राह्मणों की हीलना, निंदा, अपमान आदि करके अमनोज्ञ आहार पानी देने से जीव दुःखपूर्वक जीने योग्य अशुभ कर्म का बंधन करता है ।" गौतम-भगवन् ! जीव सुखपूर्वक दीर्घकाल तक जीने योग्य कर्म किस कारण से बांधता है ? भगवन्---गौतम ! हिंसा-निवृत्ति से, असत्य निवृत्ति से तथा श्रमण-ब्राह्मणों की वंदना उपासना करके प्रियकारी आहार पानी का दान करने से जीव शुभ दीर्घायुष्य का बंध करता है।” ३० सिद्ध स्वरूप गौतम स्वामी ने पूछा-भगवन् ! सिद्ध भगवान को सादि (आदि सहित) अपर्यवसित (अंत रहित-पुनर्जन्म से मुक्त) किसलिए और क्यों कहा जाता है ? ___ भगवान-गौतम ! जिस प्रकार अग्नि से जला देने पर बीज की प्रजनन शक्ति नष्ट हो जाती है, वह पुनः अंकुर रूप में उत्पन्न नहीं हो सकता। इसीप्रकार सिद्ध भगवान ने कर्म रूप बीजों को दग्ध कर डाला है, अतः जन्म के नये अंकुर उत्पन्न नहीं हो सकते, इसकारण सिद्ध भगवान को सादि अपर्यवसित कहा जाता है। २९. भगवती, श० ५ । उ०६ ३०. भगवती, श० ५ । उ०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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