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अध्यात्म विषयक प्रश्न
सामायिक में भांड-अभांड
भगवान महावीर एक बार राजगृह में पधारे । वहाँ गौतम स्वामी ने भगवान से पूछा- "भन्ते ! सामायिक व्रत अंगीकार करके बैठे हुए श्रावक के भंडोपकरण कोई पुरुष ले जावे और फिर सामायिक पूर्ण होने पर वह श्रावक उन भंडोपकरण की खोज करे तो क्या वह अपने भंडोपकरण की खोज करता है या दूसरे के भंडोपकरण को ?
भगवान गौतम ! वह अपने भंडोपकरण की ही खोज करता है, अन्य के भंडोपकरण की नहीं ?
गौतम-भन्ते ! शीलव्रत, गुणव्रत आदि प्रत्याख्यान एवं पौषधोपवास में श्रावक के भांड क्या अभांड (स्वामित्वमुक्त) नहीं होते ?
भगवान गौतम ! वह अभांड हो जाते हैं ।
गौतम-भन्ते ! फिर ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि वह अपना भांड खोजता है, अन्य का नहीं।
भगवान---गौतम ! सामायिक करनेवाले श्रावक के मन में यह भावना होती है कि-यह स्वर्ण, हिरण्य, वस्त्र आदि द्रव्य मेरे नहीं हैं, (उनके साथ ममत्व भाव नहीं रखता) किन्तु सामायिक व्रत पूर्ण होने के बाद वह ममत्व भाव से युक्त हो जाता है,
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