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________________ ११४ इन्द्रभूति गौतम इसलिए गौतम ! कहा जाता है कि वह स्वकीय भांड की अनुगवेषणा करता है, परकीय भांड की नहीं ।२२ आत्मा का गुरुत्व लघुत्व गौतम स्वामी ने भगवान से पूछा-भन्ते ! यह जीव-आत्मा (अरूपी होने के कारण) भारीपन-गुरुत्व कैसे प्राप्त करता है ? भगवान-गौतम ! प्राणातिपात मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य आदि के सेवन से आत्मा गुरुत्व प्राप्त करता है । गौतम–भन्ते ! यह आत्मा लघुत्व कैसे प्राप्त करता है ? भगवान-गौतम ! प्राणातिपात, मषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य का निरोध करने से आत्मा लघुत्व प्राप्त करता है। इसी प्रकार प्राणातिपातादि के सेवन से जीव संसार दीर्घ करता है, और उनके त्याग से संसार को कम करता लघुता प्रशस्त है गौतम स्वामी ने पूछा-भंते ! नमण निन"थों के लिए क्या लघुता, अल्पेच्छा, अममत्व, अनासक्ति एवं अप्रतिबद्धता प्रशस्त हैं ? भगवान ने कहा-गौतम ! ये श्रमण निग्रन्थों के लिए प्रशस्त है. (इन गुणों को अपनाना चाहिए)। कषाय का आधार क्या है ? एकबार गौतमस्वामी ने भगवान से पूछा-"भंते ! कषाय कितने प्रकार के हैं ?" २२. भगवती सूत्र शतक ८१५ २३. भगवती शतक १९ २४. भगवती शतक ११९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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