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________________ ९६ दशा पर उनका हृदय पसीज गया । गौतम ने भगवान से पूछानगर में ऐसा जन्म अन्ध एवं जन्म अन्धरूप अन्य भी कोई है ?" भगवान ने कहा - "हाँ, गौतम इससे भी अन्धरूप एक पुरुष इस नगर में है ?" इन्द्रभूति गौतम _ ' भन्ते ! इस अधिक बीभत्स आकारवाला जन्म गौतम की जिज्ञासा और प्रबल हुई। पूछा - " भन्ते ! वह जन्मान्ध रूप पुरुष कौन है ?" भगवान — "गौतम ! इस नगर के नायकविजय क्षत्रिय की पत्नी मृगादेवी का आत्मज 'मृगापुत्र' नामक एक बालक है, जो जन्म से अन्धा है, उसके न हाथ पाँव है, न कान-नाक आदि अंगोपांग । केवल अंगों का आकार मात्र है । उसे मृगादेवी अपने भूमिगृह में रख कर उचित पालन-पोषण कर रही है । " गौतम की जिज्ञासा प्रबल हो उठी ! भगवान की आज्ञा लेकर वे मृगापुत्र को देखने के लिए मृगादेवी के महल की ओर चले । मृगादेवी ने प्रसन्नता पूर्वक गौतमस्वामी का स्वागत किया और पूछा - "भन्ते ! आप ने यहाँ पधारने का कष्ट किसलिए किया, आज्ञा दीजिए— 'संदिस तु णं देवाणुप्पिया ! किमागमणपयोयणं ?" गौतम ने बताया "देवी ! मैं तुम्हारे पुत्र को देखने के लिए यहाँ आया हूँ ।" मृगादेवी ने मृगापुत्र के पीछे जन्मे हुए अपने चार पुत्रों को अलंकृत विभूषित किया, और गौतम स्वामी के चरणों में गिराकर कहा -- 'भगवन् ! ये मेरे पुत्र हैं, इन्हें देखिए ! " " देवानुप्रिया ! मैं इन पुत्रों को देखने के लिए नहीं, किन्तु तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र को, जो जन्म से नेत्रहीन है, जिसे तुम भूमिगृह में छुपा के रखती हो, उसे देखने के लिए यहाँ आया हूँ ।" मृगादेवी ने आश्चर्य पूर्वक गौतम से पूछा - "भन्ते ! ऐसा ज्ञानी एवं तपस्वी कौन है जिसने मेरे इस अत्यन्त प्रच्छन्न वृतान्त को आपके समक्ष सूचित किया है ? जिस कारण आप यहाँ आये हैं ? " गौतम स्वामी ने अत्यन्त सरल भाव से कहा - " देवानु प्रिये ! मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर ने मुझे यह सब वृत्तान्त बताया है ।" ९१. अत्थि भन्ते ! केई पुरिसे जाति अन्धे, जाय अंध रूवे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only - विपाकसूत्र १।१ www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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