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________________ व्यक्तित्व दर्शन मृगादेवी गौतम के साथ वार्तालाप कर ही रहा थी कि मृगापुत्र के भोजन का समय हो गया। उसने कहा-"भंते ! आप ठहरिये, अभी आप उसे देख सकेंगे।" पश्चात् मृगादेवी ने अपने वस्त्र बदले, एक लकड़ी की गाडी में भोजन सामग्री रखी और गौतम स्वामी को अपने पीछे-पीछे चले आने का संकेत देकर उस भूमिगृह की ओर आई । भूमिगृह के द्वार पर पहुँच कर उसने वस्त्र से अपना नाक-मुह ढंका, गौतम स्वामी से भी ढंकने को कहा । मृगादेवी ने द्वार की और पीठ करके भूमिगृह का द्वार खोला । उसमें से भयंकर बदबू आ रही थी, फिर भी गौतम ने उस बालक को देखा । अंग के नाम पर सिर्फ एक मुंह था । जिस मुख से खा रहा था उसी से वापस निगल रहा था और फिर उसी वमन को चाट रहा था। उस बीभत्स एवं दयनीय रूप को देखकर गौतम के रोम-रोम उत्कंटित हो गये । गौतम मृगादेवी को सूचित कर पुनः अपने स्थान पर आये और प्रभु से पूछा-'भंते ! आपने जैसा बताया वैसा ही वह जन्मान्ध रूप पुरुष है ! उसने पूर्व जन्म में किस प्रकार के दुष्कर्म, घोर कर्म किये होंगे जिनके फलस्वरूप वह इस प्रकार अत्यन्त कष्टमय, दुर्गन्धपूर्ण बीभत्स जीवन जी रहा है ?" भगवान ने गौतम के प्रश्न पर उसके अतीत जीवन के दुष्कर्मो की लोमहर्षक कहानी सुनाई, जिसका विस्तृत वर्णन विपाक सूत्र में किया गया है । सम्पूर्ण विपाक सूत्र गौतम की इसी प्रकार की जिज्ञासाओं का एक उत्तर है। गौतम अगले अध्यायों में भी वधभूमिका ले जाते हुए अपराधियों को देखते हैं और उसके भूत-भावी जीवन का लेखा जोखा भगवान से आकर पूछते हैं । ___ ऐसा लगता है कि गौतम के मन में जिज्ञासाओं का अम्बार लगा है, जब कभी किसी प्रसंग से वे कुरेदी जाती है तो वे प्रश्न रूप में भगवान के समक्ष अवतरित हो जाती हैं। जब वे कोई भी नई बात देखते हैं तो उसके मूल तक जाने का प्रयत्न करते हैं, उसके कारणों का विश्लेषण सुनना चाहते हैं और चाहते हैं उसके भूतकालीन निमित्त-उपादान का लेखा-जोखा, एवं भावी परिणामों की अवगति । भगवती सूत्र में एक प्रसंग है । भगवान महावीर एकबार ब्राह्मण कुण्ड ग्राम में पधारे । वहाँ ऋषभदत्त नामक एक ब्राह्मण रहता था जो'धनाढ्य होने के साथ-साथ बहुत बड़ा विद्वान् भी था । वह चारों वेद, षडंग, पुराण आदि का पारंगत था, और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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