SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व दर्शन ९५ गणिपिटक का रूप दिया। आज का उपलब्ध श्रत साहित्य गौतम की जिज्ञासा का जीवित रूप है—यह कहने में कोई अत्युक्ति नहीं होगी। गौतम जब कभी किसी विशेष नई घटना को देखते, कोई नवीन चर्चा सुनते, किसी आश्चर्यकारी प्रसंग का ऊहापोह होता तो वे तुरन्त उस विषय में जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न करते। विपाक सूत्र में एक घटना आती है। मृगाग्राम नगर में विजय नामक क्षत्रिय राजा था जिसकी मृगादेवी नामक लावण्य युक्त सुन्दरी रानी की। उस मृगादेवी को एक पुत्र हुआ जो जन्म से ही अंधा, बहरा, गूगा था। जिसके हाथ, पैर, नाक, कान आदि भी नहीं थे । केवल अंगहीन एक गोलमटोल आकृति थी। मृगादेवी उस बालक को अपने भूमि गृह में रखती और उसका पालन पोषण करती। एक बार श्रमण भगवान महावीर उस मगाग्राम के चन्दन पादप नामक उद्यान में पधारे । प्रभु का आगमन सुनकर नगर के हजारों श्रद्धालु दर्शनार्थ गये । नगर में चारों ओर एक अपूर्व उत्सव जैसी हलचल मच गई थी। विजय क्षत्रिय भी भगवान का उपदेश सुनने गया । उस ग्राम में एक जन्म से अन्ध दरिद्र भिखारी रहता था। उसके सिरके केश अत्यन्त रूक्ष एवं बिखरे हुए, दीखने में बडा कुरुप एवं बीभत्स था । उसके गन्दे कपड़ों पर मक्खियों के झुण्ड के झुण्ड भिनभिनाते रहते। कोई उसके पास से गुजरना नहीं चाहता--ऐसी दरिद्रता की साक्षात् मूर्ति था वह जन्मान्ध भिखारी । एक कोई आँख वाला आदमी उसकी लकुटिया पकड़कर द्वार-द्वार पर उसे घुमाता और भिक्षा मांग कर आजीविका करता। उस भिखारी ने नगर में लोगों के आनेजाने का कोलाहल सुना तो किसी से पूछा-आज नगर में क्या इन्द्रमहोत्सव, स्कन्दमहोत्सव आदि कोई उत्सव है ? क्या बात है आज, इतनी हलचल क्यों ? भिखारी के प्रश्न को बहुतों ने सुना अनसुना कर दिया। किसी ने बताया"तुझे मालुम नहीं ? आज भगवान महावीर नगर के चन्दन पादप उद्यान में पधारे हैं, उनकी वाणी सुनने को जनता उमड़ी जा रही है ।'' अंधा भिखारी भी भगवान का उपदेश सुनने को उत्सुक हुआ और समवसरण की ओर गया। गणधर गौतम ने हजारों मनुष्यों के पीछे खड़े इस दरिद्र नारायण जन्मान्ध को देखा तो उसकी दयनीय . ९०. विपाक सूत्र १११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy