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व्यक्तित्व दर्शन
एक बार साल महासाल नामक राजर्षियों ने भगवान महावीर से पृष्ठचंपा के गांगलि नरेश को प्रतिबोध देने के लिए जाने की आज्ञा मांगी । गागलि राजर्षि के गृहस्थ जीवन के भानजे थे । उपयुक्त अवसर देखकर भगवान ने गौतम स्वामी के साथ उन्हें पृष्ठचंपा की ओर भेजा ।
गागलि नरेश ने गौतम स्वामी एवं अपने मामा मुनि के आने का संवाद सुना तो वह प्रसन्नता पूर्वक उन्हें वंदना करने गया । गौतम स्वामी की मधुर उपदेश शैली से प्रभावित होकर गागलि अपने पुत्र को राज्य तिलक करके स्वयं प्रव्रजित हो गया । गागलि के साथ ही उसके पिता पिठर एवं माता यशोमति ने भी दीक्षा ग्रहण की ।
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अपने आगमन का लक्ष्य पूरा करके गौतम स्वामी ने पांचों शिष्यों के साथ चम्पा की ओर विहार किया जहाँ भगवान महावीर धर्मदेशना दे रहे थे । मार्ग में साल-महासाल, पिठर, गागलि मुनि एवं यशोमती साध्वी पांचों ही अपने-अपने शुद्ध विचारों की उत्कृष्टता के कारण क्षपक श्र ेणी को प्राप्त करके केवल ज्ञान की भूमिका पर पहुँच गये । उनके केवलज्ञान की घटना गौतम को विदित नहीं हुई । जब वे चम्पा में पहुँच कर भगवान के समवसरण में प्रविष्ट हुए और प्रभु की वंदना प्रदक्षिणा करके केवली परिषद् की ओर जाने लगे तो गौतम स्वामी को उनके व्यवहार की अनभिज्ञता पर आश्चर्य हुआ । उन्होंने मुनियों को टोकते हुए कहा- "मुनियो ! क्या आपको जिनेन्द्र भगवान की धर्मपरिषद् की विधि का ज्ञान नहीं है ? आप लोग कहाँ जा रहे हैं ? "
गौतम स्वामी के कथन पर भगवान ने कहा - " गौतम ! मुनियों का आचरण ठीक है ये केवल ज्ञानी हो गए हैं तुम केवली की अशातना मत करो ।
८८. त्रिपष्टिशलाका० १० / ९ श्लोक १६६-१६७
इसी घटना के साथ जुड़ी हुई एक अन्य घटना भी प्रसिद्ध है जिसकी चर्चा आचार्य अभयदेव ( भगवती टोका १४।७) एवं नेमिचन्द्र ने ( उत्तराध्ययन १०1१ ) में की है - वह इस प्रकार है
एक बार गौतम स्वामी अष्टापद पर्वत पर गए। वहाँ कौडिन्य, दिन्न एवं सेवाल नामक तीन तापसों के साथ पाँच-पाँच सौ तापसों के समूह अष्टापद की यात्रा को आए हुए थे । वे अष्टापद पर चढ़ने में असमर्थ हो रहे थे । गौतम स्वामी अपने ऋद्धिबल से अष्टापद पर तुरन्त चढ़ गये ।
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