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________________ इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर ने महाशतक श्रावक के इस आक्रोश पूर्ण कथन की चर्चा गौतम से की। सारा घटना चक्र बताते हुए भगवान ने कहा- “गौतम ! श्रावक को इस प्रकार की, सत्य होते हुए भी अनिष्ट, अप्रिय, जिसे सुनने पर दुःख होता हो, विचार करने पर मन को चुभती हो, ऐसी वाणी नहीं बोलना चाहिए। महाशतक श्रावक ने रेवती को इस प्रकार के आक्रोश पूर्ण वचन कहकर अपने व्रत को दूषित किया है, अतः तुम जाकर उसे कहो, वह अपने इस अतिचार की आलोचना, आत्मनिन्दा करके आत्मा को विशुद्ध बनाए।" भगवान का धर्म संदेश लेकर गौतम राजगृह में महाशतक श्रावक के पास आये । महाशतक भगवान गौतम को आते देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ, विनय पूर्वक वन्दना की। गौतम ने महाशतक को भगवान महावीर का धर्म संदेश सुनाते हुए कहा--- "देवानुप्रिय ! तुमने जो इस प्रकार के आक्रोश पूर्ण कटुवचन कहकर रेवती की आत्मा को संतप्त किया, भयभीत किया यह उचित नहीं था । तुम्हें शांति एवं मौन ही श्रेयस्कर था । तुम अपनी भून का प्रायश्चित्त करो, आलोचना करके आत्मा को निर्दोष बनाओ।" गौतम के कथनानुसार महाशतक ने आत्म-आलोचना करके अन्त में समाधि मरण प्राप्त किया। अनन्य प्रभुभक्त गौतम के जीवन के इन विविध रूपों को देखने से ज्ञात होता है कि वे जितने आत्म-साधना के प्रति निष्ठाशील थे, उतने ही लोककल्याण की भावना से कर्तव्य के प्रति सतत जागरूक रहते थे । भगवान महावीर के लोक कल्याणकारी संदेश को जन-जन तक पहुँचाने में वे प्रतिक्षण प्रस्तुत थे । गागलि नरेश को प्रतिबोध देने हेतु पृष्ठचंपा जाने की घटना इस बात की साक्षी है कि वे भगवान महावीर के संकेत के अनुसार अपने संपूर्ण जीवन को न्यौछावर करने के लिए भी कृतसंकल्प थे । ८७. नो खलु कप्पइ गोयमा !..........."संतेहिं तच्चेहि तहिएहिं, सब्भूएहि अणिहि अकंतेहि अप्पिएहि अमणुण्णेहि....."वागरणेहिं वागरित्तए । -उवासग दशा ८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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