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इन्द्रभूति गौतम
कुशलता है कि वह गम्भीर एवं सरल से सरलतम भाषा में अपनी बात का प्रभाव दूसरों पर डाल सके, और उन्हें अपना अनुयायी बना सके।
प्रबुद्ध संदेशवाहक
गौतम की उपदेश कुशलता के साथ ही उनके व्यक्तित्व की एक और विशेषता है कि वे भगवान महावीर के प्रिय शिष्य होने के साथ ही विश्वस्त संदेश वाहक भी थे। भगवान महावीर जब अपने शिष्यों को विशेष धर्म संदेश देते तो प्रायः वह गणधर गौतम के माध्यम से दिया जाता था । वैसे सामान्य रूप में श्रमण वर्ग को जो शिक्षात्मक संदेश दिया जाता था वह भी गौतम के माध्यम से, या गौतम को संबोधित करके दिया जाता था। उत्तराध्ययन का दशवाँ अध्ययन इसका स्पष्ट प्रमाण है जहाँ बार-बार गौतम को संबोधित करके –'समयं गोयम मा पमायए" का घोष ध्वनित हो रहा है । भगवती सूत्र में भी इस प्रकार के अनेक स्थल हैं जिनमें उपदेश का माध्यम गौतम को बनाया गया है । ८५ दूसरे प्रकार के कुछ विशेष संदेश जब भगवान महावीर किसी व्यक्ति विशेष को लक्ष्य करके गौतम को देते तो गौतम उन्हें यथातथ्य रूप में उस पात्र तक पहुँचाते---यह भी एक घटना से स्पष्ट होता है।
__राजगृह निवासी गाथापति महाशतक भगवान महावीर का उपासक था। उसके पास विपुल धन था। उसने तेरह स्त्रियों के साथ विवाह किये । रेवती नाम की उसकी पत्नी, जो बड़ी क्रूर एवं विशेष कामासक्त थी। उसने अपनी सभी सौतों को मरवा डाला था । वह मद्य एवं मांस का भी सेवन करती थी। रेवती के स्वभाव से महाशतक को घृणा हो गई। वह उससे विरक्त होकर उपवास पौषध आदि आत्मसाधना में प्रवृत्त हो गया।
एकबार रेवती मद्य के नशे में चूर हुई अत्यन्त कामातुर एवं निर्लज्ज होकर महाशतक के पास आई। उसे अपने कामपाश में बांधने के प्रयत्न करने पर भी जब महाशतक उससे सर्वथा विरक्त रहा, तो वह कहने लगी-'प्रिय ! मुझे मालूम है तुम्हारे सिर पर धर्म का नशा चढ़ा है, तुम मुक्ति के इच्छुक होकर यह विरक्ति का ढोंग रच रहे हो, पर तुम नहीं जानते कि यदि मेरी इच्छा को तृप्त कर मेरे साथ काम भोग सेवन करते
८५. भगवती सूत्र ७।२।८।१० आदि
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