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________________ व्यक्तित्व दर्शन ८७ भगवान ने समाधान किया- "गौतम ! यह पूर्व बद्ध प्रीति एवं वैर का खेल है । इस किसान के जीव की तुम्हारे साथ पूर्वप्रीति है, अनुराग है, इसलिए तुम्हें देखकर इसके मन में अनुराग पैदा हुआ और तुम्हारे उपदेश को सुनकर इसे सुलभ बोधित्व की प्राप्ति हुई । मेरे प्रति अभी इसके संस्कारों में वैर एवं भय की स्मृतियाँ शेष हैं, इसीलिए यह मुझे देखकर पूर्व वरस्मरण के कारण भयभीत होकर भाग छूटा।" गौतम के आग्रह पर भगवान ने अपने त्रिपृष्ठ वासुदेव के जीवन की घटना सुनाई । “गौतम ! इस जन्म से नौ जन्म पूर्व में त्रिपृष्ट नाम का राजकुमार हुआ था। तुम मेरे प्रिय सारथी थे। एक बार मैंने एक उपद्रवी केशरी सिंह को पकड़ कर हाथों से चीर डाला था। उस समय सिंह की अंतिम सांस जब छूट रही थी तब तुमने उसे प्रिय वचनों से संतुष्ट किया एवं मनुष्य के हाथों से मारे जाने पर अफसोस न करने को सान्त्वना दी थी । ८१ उन अन्तिम समय के अनुगगमय वचनों को स्मृति के कारण तुम्हारे प्रति इसके मन में अनुगग के संस्कार जन्मे और मेरे हाथ से मृत्यु होने के कारण मेरे प्रति इसके मन में वैर एवं भय की भावना का संचार हुआ।"८२ यह घटना सूत्र काफी लम्बा है, और इसके बीज भगवती सूत्र ८३ एवं उत्तराध्ययन सूत्र में विद्यमान हैं, जिनसे अनेक अन्य घटनाएं भी पल्लवित हुई हैं। जिसकी चर्चा अगले पृष्ठों पर की जा रही हैं। इस घटना में सूक्ष्म रूप से गौतम की उपदेश कुशलता की एक विरल झांकी मिलती है कि अज्ञान किसान को भी उन्होंने उपदेश देकर सुलभ बोधि बना दिया। यह तो स्पष्ट है कि किसान के समक्ष गौतम ने गम्भीर तत्त्व ज्ञान की गुत्थियाँ नहीं सुलझाई होंगी। उसे तो उस सामान्य एवं सरल उपदेश की आवश्यकता थी जो उसके सरल हृदय को छू सके और मोटी बुद्धि की पकड़ में आ सके । और यही उपदेशक की ८१. (क) आवश्यक चूणि पृ० २३४ (ख) त्रिषष्टिशालाका० १०।१ ८२. त्रिषष्टिशलाका० १०१९ ८३. भगवती शतक १४७ ८४. उत्तरा० अ० १०१२८ (टीका) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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