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अमर क्षणिकाएँ
मेरा ईश्वर मेरे अन्दर, मैं ही अपना ईश्वर हूँ । कर्ता, धर्ता, हर्ता अपने जग का, मैं लीलाधर हूँ ।। शुद्ध-बुद्ध, निष्काम, निरंजन, कालातीत सनातन हूँ । एक रूप हूँ सदा-सर्वदा, ना नूतन, न पूरातन हूँ ।।
लेखक उपाध्याय अमरमुनि
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