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जीव द्रव्य
जीव का लक्षण
जीव के लक्षण का कथन तीन प्रकार से किया गया -आगमिक दृष्टि से, अध्यात्मदष्टि से और दार्शनिकदष्टि से । जैन ग्रन्थों में तीन प्रकार से जीव का लक्षण किया गया है। लक्षण से ही लक्ष्य का ज्ञान होता है । जिस वस्तु का ज्ञान करना हो, उसका लक्षण जान लेना, आवश्यक होता है। किसी ने पूछा-गाय का लक्षण क्या है ? उत्तर देने वाला कहेजिसके सिर पर सींग हैं, वह गाय है, तो यह लक्षण ठीक नहीं क्योंकि इसमें अतिव्याप्ति दोष है। गाय के अतिरिक्त भैंस, बकरी और हिरन के भी सींग होते हैं । यदि कहा जाये, कि जिसका कपिल वर्ण है, वह गाय है, तो ठीक नहीं। क्योंकि गाय सफेद तथा चितकबरी भी होती है । इस लक्षण में अव्याप्ति दोष है । सभी गायों में लक्षण नहीं गया । यदि कहा जाये, कि एक खूर वाली गाय होती है, तो ठीक नहीं। क्योंकि इसमें असम्भव दोष है। गाय के दो खुर होते हैं, एक कभी नहीं होता । यदि कहा जाये, कि जिसके गले में सास्ता है, वह गाय है, तो यह लक्षण सर्वथा निर्दोष होगा। अतः बिना लक्षण के लक्ष्य वस्तु की सच्ची पहचान नहीं होती । लक्षण होना ही चाहिए ।
आगमगत लक्षण
आगम में कहा गया है-एयं जीवस्स लक्खणं अर्थात् यह जीव का लक्षण है। कौन-सा है, वह लक्षण जिसमें ज्ञान हो, जिसमें दर्शन हो, जिसमें चारित्र हो, जिसमें तप हो, जिसमें बल वीर्य हो और जिसमें उपयोग हो, वह जीव है । जिसमें ये गुण न हों, अथवा जिसमें ये धर्म न हों,
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