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७४ | जैन-दर्शन के मूलभूत तत्त्व
७. तम-तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में तम की परिभाषा की है- तम वस्तुओं के देखने में प्रतिबन्धक कारण है और प्रकाश का विरोधी तत्त्व है। कुछ विचारक अन्धकार के अस्तित्व को प्रकाश की तरह स्वतन्त्र नहीं मानते, वे उसे प्रकाश का अभाव मानते हैं। परन्तु वह प्रकाश का अभाव नहीं, प्रत्युत पुद्गल की स्वतन्त्र पर्याय है और प्रकाश की तरह उसका भी अस्तित्व है। उसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श का सदभाव है । विज्ञान भी अन्धकार को ठोस पदार्थ मानता है और वर्ण आदि से युक्त मानता है। रंग के सम्बन्ध में ए. डब्ल्यू. बारटॉन का कहना है-जैसे पदार्थ के तापमान को बढ़ाया जाए, तो वह सर्वप्रथम पार-रक्त Infra-red प्रकाश को छोड़ता है, उसके बाद लाल Red light, पीत yellow light, और सफेद white light प्रकाश छोड़ता है। जैसे-जैसे पदार्थ के तापमान को बढ़ाया जाता है, वैसे-वैसे रंग अधिक गहरा होता जाता और रंग की छोटी लहरें लम्बी होती जाती हैं। उदाहरण के रूप में हम कुछ तारों stars को ले सकते हैं, जो नीलेपन को लिए सफेद प्रकाश के साथ चमकते हैं । यह इस बात का स्पष्ट संकेत है, कि वहाँ का तापमान अवश्य ही ऊँचा होना चाहिए । इसी प्रकार अन्धकार की गर्म किरणे Dark heatrays हैं, जो देखने की शक्ति उत्पन्न नहीं करती। इन किरणों की उपस्थिति में क्या प्रमाण है ? जिससे यह माना जा सके कि अन्धकार भी वास्तविक पदार्थ है ? इसके समाधान में एक उदाहरण दिया गया है, कि बिल्ली और उल्लू-जो अंधेरा होते हए भी infra-red rays की मदद में रात के अंधेरे को भी देख सकते हैं। और Infra-red rays की सहायता से ही फोटोग्राफर घुप अंधेरे utter darkness में फोटोग्राफ ले सकता है। यदि अंधेरे में ये किरणें नहीं होतीं, तो जिन पशु-पक्षियों की आँखों में से infrared-rays निकलती है, वे अंधेरे में कैसे देख पाते और अंधेरे में फोटो कैसे लिये जा सकते ।। इससे स्पष्ट होता है कि अंधकार में भी किरणें हैं वे हमारी आँखों को प्रभावित नहीं करती, परन्तु उनके अस्तित्व को फोटोग्राफिक आँखों Eyes of a special photographic plate से देखा जा सकता है । जैन-दर्शन ने इस सत्य-तथ्य को प्रारम्भ से ही स्वीकार किया है कि अंधकार पुद्गल की एक पर्याय है, उसमें रंग, रूप, गन्ध, रस, स्पर्श सब हैं।
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A Text book of Heat, by A. W. Barton, P. 361.
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