________________
पुद्गल का स्वरूप | ७३ एक-दूसरे के साथ मिलना यह पुद्गल की बन्ध-पर्याय है । प्रत्यक्ष में परिलक्षित होने वाला यह भौतिक जगत् मात्र माया, अविद्या या कल्पना ही नहीं, ठोस सत्य है । स्वप्न की तरह काल्पनिक ही नहीं, अपनी वास्तविक सत्ता रखने वाला सत् पदार्थ है । विज्ञान ने वैज्ञानिक परीक्षणों एवं प्रयोगों के द्वारा एटम ( Atom) में जिन इलेक्ट्रोन ( Electron ) और प्रोटोन (Proton) को चक्कर लगाते हुए देखा, वह जैन परम्परा द्वारा मान्य सूक्ष्मसूक्ष्म Fincfine स्कन्ध में आबद्ध परमाणुओं का ही गतिचक्र है । वास्तव में पुद्गल में होने वाला परिवर्तन उसकी पर्यायों में ही होता है और उस का उपादान कारण वह स्वयं है । अभिप्राय यह है कि पुद्गल का नियन्त्रण पौद्गलिक साधनों से ही हो सकता है और वे साधन भी परिणमनशील हैं और उनका परिणमन भी पौद्गलिक पर्यायों में ही होता है । अतः परमाणुओं के संयोग-वियोग से पुद्गलों में होने वाला विभिन्न प्रकार का बन्ध पुद्गल की एक पर्याय है ।
३-४. सौक्ष्म्य और स्थौल्य - सूक्ष्मता भी पुद्गल की एक पर्याय है और स्थूलता भी पुद्गल की एक पर्याय है । दोनों पर्यायें दो-दो प्रकार की हैंअन्त्य सूक्ष्मता Extreine fineness और आपेक्षिक सूक्ष्मता Relative fineness सौक्ष्म्य Fineness पर्याय है और Extreme grossness ( अन्त्य -स्थूलता) और Relative grossness ( सापेक्षिक - स्थूलता) स्थौल्य grossness पर्याय है । पुद्गल में परमाणु अन्त्य - सूक्ष्म पर्याय है, इससे सूक्ष्म अंश हो ही नहीं सकता और पुद्गल में ! विश्वव्यापी महास्कन्ध अन्त्य स्थौल्य Extreme Grossness पर्याय है, इससे स्थूल एवं विराट् पदार्थ इस विश्व में अन्य कोई नहीं है । सापेक्षिक के लिए कहा जा सकता है कि बेर, टमाटर से सूक्ष्म है
और तरबूज, टमाटर से स्थूल है । इस प्रकार सापेक्षिक सूक्ष्म और स्थूलपर्याय में और भी अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं ।
५. संस्थान - संस्थान का अर्थ है - आकार । यह भी पुद्गल की एक पर्याय है । पुद्गल - स्कन्धों में परमाणओं के संयोग-वियोग से विभिन्न प्रकार के आकार बनते और बिगड़ते रहते हैं । अतः पुद्गल का आकार तो है, परन्तु इनका एक निश्चित एवं व्यवस्थित आकार नहीं है । जिस प्रकार बादलों का कोई निश्चित एक आकार नहीं है ।
६. भेद - यह भी पुद्गल की एक पर्याय है। पुद्गल-स्कन्धों में होने वाले परमाणुओं के संघटन - विघटन से वह विभिन्न भेदों में विभक्त होता रहता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org