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७२ | जैन-दर्शन के मूलभूत तत्त्व
बेतार के तार (Wireless) के माध्यम से उसे स्थानान्तर में भी भेजा जा सकता है। शब्द का एक स्थान से दूसरे स्थान में गति करने का अभिप्राय है, शब्द-वर्गणा के परमाणओं से निर्मित शब्द-पर्याय वाले पुद्गल स्कन्ध का जाना । और शब्द की उत्पत्ति का अर्थ है-आस-पास के स्कन्धों में शब्दपर्याय का उत्पन्न होना। अभिप्राय यह है कि शब्द पुद्गल-द्रव्य की एक पर्याय है और उसका आधार है-पुद्गल-स्कन्ध । विश्व का समस्त वातावरण गतिशील परमाण (पुद्गल) से बना हआ है। पौद्गलिक स्कन्धों में परमाणुओं के संयोग एवं वियोग से उष्णता, सर्दी, प्रकाश, छाया, अन्धकार आदि पर्यायें उत्पन्न एवं नष्ट होती रहती हैं।
जैन-दर्शन की मान्यता के अनुसार परमाण की गति एक समय में लोक के एक छोर से दूसरे छोर लोकान्त तक हो सकती है और वह गति करते समय आस-पास के वातावरण को भी प्रभावित करता है। आज के विज्ञान ने शब्द और प्रकाश की गति का माप प्रस्तुत किया है, पर परमाणु की गति से-जो उसकी स्वाभाविक गति है, अति अल्प अंश है। विज्ञान इस बात को स्वीकार करता है कि प्रकाश, गर्मी, छाया आदि स्कन्ध एक स्थान से बहुत दूर तक गति करते समय अपनी गति के वेग (Force) के अनुरूप वातावरण को प्रकाश, गर्मी एवं छाया की पर्यायों से युक्त बनाते जाते हैं। बैटरी (Torch) से निकलने वाली प्रकाश की पर्याय स्वयं गति करती हैं और गतिशील पृद्गलों को प्रकाश एवं गर्मी के रूप में परिवर्तित करके आगे धकेलती हैं। इसी सिद्धान्त Theory के आधार पर विज्ञान ने Wireless से शब्द को स्थानान्तरित किया, Telesco के माध्यम से अक्षरों को और Television के माध्यम से फोटो को स्थानान्तरित किया। अब तो गुलाब आदि की सुगन्ध को भी स्थानान्तरित करने का प्रयत्न चालू है । इससे स्पष्ट होता है, कि शब्द पुद्गल की पर्याय है और वह गति करते समय मार्ग में पड़ने वाले पुद्गलों को भी शब्दायमान बनाती है ।
२. बन्ध-निरन्तर गतिशील एवं उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य स्वभाव वाले अनन्त-अनन्त परमाणओं के संयोग-वियोग से स्कन्धों का निर्माण और विनाश होता है। परमाणओं का परस्पर संयोग और वियोग दो प्रकार से होता है - नैसर्गिक और प्रायोगिक । वे अन्य के प्रयत्न के बिना भी परस्पर मिलते और बिखरते रहते हैं और कुछ स्कन्धों में स्थित परमाणु अन्य के प्रयोग से भी परस्पर बंधते एवं एक-दूसरे से अलग होते हैं ।
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