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________________ पुद्गल का स्वरूप | ७१ विक गुण हैं और उनकी पयायों का जो तद्-तद् रूप में परिणमन होता है, वह विभाव-पर्याय है । इस प्रकार निश्चय दृष्टि से आचार्य कुन्दकुन्द परमाणु को ही पुद्गल द्रव्य मानते हैं, और उसके गुणों एवं पर्यायों को ही उसका स्वाभाविक गुण और स्वभाव पर्यायें स्वीकार करते हैं। परन्तु, स्कन्ध के गुणों एवं पर्यायों को वे स्वभाव-गुण एवं स्वभाव-पर्याय नहीं, प्रत्युत विभावगुण एवं विभाव-पर्याय कहते हैं ।। व्यवहार-नय की अपेक्षा से जैन-दर्शन स्कन्ध के गुणों एवं स्कन्ध की पर्यायों को पुद्गल के गुण एवं पुद्गल की पर्याय स्वीकार करता है । इसी अपेक्षा से भगवान महावीर ने पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस एवं आठ स्पर्श को पुद्गल के गुण कहे हैं। आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थ सूत्र में भी इन्हीं गुणों का उल्लेख किया है और आचार्य कुन्दकुन्द ने भी पञ्चास्तिकायसार में उक्त गुणों को पद्गल में स्वीकार किया है। इस प्रकार स्कन्ध की अपेक्षा से भी पद्गल की पर्यायों का आगम में उल्लेख किया गया है। उत्तराध्ययन सूत्र में शब्द, अन्धकार, उद्योत (प्रकाश), प्रभा (कान्ति), छाया, आतप, वर्ण, गन्ध, और स्पर्श आदि को पुद्गल का गुण कहा है। तत्त्वार्थ सूत्र में आचार्य उमास्वाति ने पुद्गल को शब्द, बन्ध, सौक्ष्म्य, स्थौल्य, संस्थान, भेद. तम, छाया, आतप, उद्योत आदि पर्यायों से युक्त माना है। कुछ अन्य दार्शनिक शब्द, अन्धकार, छाया, प्रकाश आदि को पुद्गल की पर्याय न मानकर आकाशादि का गुण या अभाव रूप मानते हैं। परन्तु जैन-दर्शन की मान्यता इस प्रकार है १. शब्द-शब्द न तो आकाश का गुण है और न मात्र शक्ति रूप है। आकाश रूप रहित है और शब्द रूप युक्त है, इसलिए वह आकाश का गुण नहीं हो सकता। शब्द शक्तिमान पुद्गल-द्रव्य का स्कन्ध है । अनन्त परमाणुओं के संयोग से बना हुआ एक स्कन्ध है और वह मुख से मुखरित होने के बाद वायु के माध्यम से लोक-आकाश में फैलते समय आस-पास के वातावरण को शब्दायमान बनाता जाता है, झनझनाता जाता है । यन्त्रों के द्वारा उसके वेग को, गति को और ध्वनि को बढ़ाया जा सकता है, और उसे यन्त्रों में पकड़ा भी जा सकता है, और ट्रान्समोटर (Trans nitter) या १. नियमसार, २७-२६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003427
Book TitleJain Darshan ke Mul Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year1989
Total Pages194
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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